प्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा आज 01 जुलाई से शुरू होने वाली है। यह 01 जुलाई से प्रारंभ होकर 12 जुलाई तक चलेगी। यह यात्रा 01 जुलाई को शाम 04:00 बजे से जगन्नाथ रथ यात्रा प्रारंभ हो जाएगी। भक्त 3 किलोमीटर तक इन रथों को खींचकर ले जाएंगे। सबसे आगे बलराम जी का रथ तालध्वज, उसके बाद सुभद्रा जी का रथ दर्पदलन और फिर भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष होगा।
हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल आषाढ़ मास की द्वितीया तिथि को भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर जाते हैं। ओडिशा के पुरी शहर में स्थित जगन्नाथ मंदिर में हर साल धूमधाम के साथ रथयात्रा निकाली जाती है। जगन्नाथ मंदिर से तीन सजेधजे रथ रवाना होते हैं। इनमें सबसे आगे बलराज जी का रथ, बीच में बहन सुभद्रा का रथ और सबसे पीछे जगन्नाथ प्रभु का रथ होता है।
रथ यात्रा 2022 शेड्यूल01 जुलाई 2022 (शुक्रवार) - रथ यात्रा प्रारंभ
05 जुलाई 2022 (मंगलवार) - हेरा पंचमी (पहले पांच दिन गुंडिचा मंदिर में वास करते हैं)
08 जुलाई 2022 (शुक्रवार) - संध्या दर्शन (मान्यता है कि इस दिन भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने से 10 साल श्रीहरि की पूजा के समान पुण्य मिलता है)
09 जुलाई 2022 (शनिवार) - बहुदा यात्रा (भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व बहन सुभद्रा की घर वापसी)
10 जुलाई 2022 (रविवार) - सुनाबेसा (जगन्नाथ मंदिर लौटने के बाद भगवान जगन्नाथ अपने भाई-बहन के साथ शाही रूप लेते हैं)
11 जुलाई 2022 (सोमवार) - आधर पना (आषाढ़ शुक्ल द्वादशी पर दिव्य रथों पर एक विशेष पेय अर्पित किया जाता है। इसे पना कहते हैं।)
12 जुलाई 2022 (मंगलवार) - नीलाद्री बीजे ( नीलाद्री बीजे जगन्नाथ यात्रा का सबसे दिलचस्प अनुष्ठान है।)
क्यों निकाली जाती है रथयात्रा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार लाडली बहन सुभद्रा ने अपने भाइयों कृष्ण और बलराम से नगर देखने की इच्छा जताई थी। तब दोनों भाई अपनी प्यारी बहन को रथ में बैठाकर नगर भ्रमण के लिए ले गए थे। इस दौरान तीनों अपनी मौसी के घर गुंडिचा भी गए और यहां पर 7 दिन तक रुके और उसके बाद नगर यात्रा को पूरा करके वापस पुरी लौटे। कहते हैं कि तभी से यहां पर हर साल रथ यात्रा निकालने की परंपरा का आरंभ हुआ था।
इस भक्त की मजार पर रुकता है रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ का रथ एक मुस्लिम भक्त सालबेग की मजार पर कुछ समय के लिए जरुर रुकता है। कहा जाता है कि एक बार जगन्नाथजी का यह मुस्लिम भक्त सालबेग अपने भगवान के दर्शन करने के लिए मंदिर नहीं पहुंच सका था। फिर उसके मरने के बाद जब उसकी मजार बनी जो जगन्नाथजी का रथ खुदबखुद उसकी मजार पर रुक गया और कुछ देर के लिए आगे नहीं बढ़ पाया। फिर उस मुस्लिम सालबेग की आत्मा के लिए शांति प्रार्थना की गई तो उसके बाद रथ आगे बढ़ पाया। तब से हर साल रथयात्रा के दौरान रास्ते में पड़ने वाली सालबेग की मजार पर जगन्नाथजी का रथ कुछ समय के लिए जरूर रुकता है।
रथ में नहीं होता एक भी कील का प्रयोगजगन्नाथ रथ यात्रा के तीनों रथों को बनाने में किसी भी धातु का प्रयोग नहीं किया जाता और न ही इसमें कोई कील लगाई जाती है। यह रथ पूरी तरह से केवल नीम की परिपक्व और पकी हुई लकड़ी से तैयार किए जाते हैं। इसे दारु कहा जाता है। रथ बनाने में जिस लकड़ी का इस्तेमाल किया जाएगा उसका चयन बसंत पंचमी के दिन किया जाता है और अक्षय तृतीया के दिन से रथ को बनाने का काम शुरू किया जाता है। भगवान जगन्नाथ के रथ में कुल 16 पहिए होते हैं और यह बाकी दोनों रथों से बड़ा भी होता है।
ये हैं तीनों रथों के नामभगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष सबसे ऊंचा 45।6 फीट का, उसके बाद बलरामजी का रथ तालध्वज रथ 45 फीट का और उसके बाद बहन सुभद्रा का रथ दर्पदलन 44।6 फीट का होता है।
तीनों रथों के रंग भी होते है भिन्नतीनों रथों का रंग भी अलग-अलग होता है। भगवान जगन्नाथ का रथ नंदीघोष पीले और लाल रंग का होता है। बलरामजी का रथ तालध्वज लाल और हरे रंग का होता है। वहीं बहन सुभद्रा का रथ दर्पदलन काले और लाल रंग का होता है।
सोने की झाड़ू से होती है सफाईजब तीनों रथ यात्रा के लिए सजसंवरकर तैयार हो जाते हैं तो फिर पुरी के राजा गजपति की पालकी आती है और फिर रथों की पूजा की जाती है। इस पूजा को पारंपरिक भाषा में छर पहनरा कहा जाता है। उसके बाद सोने की झाड़ू से रथ मंडप और रथ यात्रा के रास्ते को साफ किया जाता है।