जीवन में सफलता दिलाता है सोम प्रदोष व्रत, जानें इसकी कथा

आज पौष मास का प्रदोष व्रत हैं जो कि सोमवार को पड़ रहा हैं जिस कारण इसे सोम प्रदोष के रूप में जाना जाता हैं। यह इस साल का अंतिम प्रदोष व्रत हैं जो कि बहुत महत्व रखता हैं। इस दिन रखा गया व्रत व्यक्ति के जीवन में सकारात्मकता लेकर आता हैं और जीवन में सफलता दिलाता है। इस दिन प्रदोषकाल में सिर्फ शिवलिंग के दर्शन से सर्व जन्मों के पाप मिट जाते हैं व बेलपत्र चढ़ाकर दीप जलाने से अनेक पुण्य मिलते हैं। आज हम आपको सोम प्रदोष व्रत की कथा के बारे में बताने जा रहे हैं जो जिसको सुनने से मानसिक विकार दूर होते हैं व ज़मीन जायदाद में लाभ होता है।

एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था, इसलिए प्रातः होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी। एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बन्दी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था, इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा।

एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा और उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार भा गया। कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। उन्होंने वैसा ही किया। ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुनः प्राप्त कर आनन्दपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के माहात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने दुसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं।”