अजा एकादशी 2019: व्रत करने से होता है सभी पापों का नाश, जानें इससे जुड़ी कथा

कृष्ण जन्माष्टमी के त्यौंहार के बाद आज भाद्रपद कृष्ण एकदशी तिथि को 'अजा एकदशी' के रूप में जाना जाता हैं। वैसे तो सभी एकादशी का पौराणिक महत्व होता हैं लेकिन अजा एकादशी का व्रत आपके सभी पापों के नाश के रूप में फलदायी होता हैं। आज सुबह 7 बजकर 3 मिनट से शुरू हुई एकादशी कल सुबह 5 बजकर 10 मिनट तक रहेगी। इस दिन सभी भक्तगण व्रत रखकर भगवान का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं। इसलिए आज हम आपके लिए 'अजा एकादशी' से जुड़ी कथा की जानकारी लेकर आए हैं जिसको पढने से लाभ का महत्व और बढ़ जाता हैं। तो आइये जानते हैं अजा एकादशी की व्रत कथा के बारे में।

पौराणिक काल में अयोध्या नगरी में एक चक्रवर्ती राजा राज्य करता था। उसका नाम हरिश्चन्द्र था। वह अत्यन्त वीर, प्रतापी तथा सत्यवादी था। प्रभु इच्छा से उसने अपना राज्य स्वप्न में एक ऋषि को दान कर दिया और परिस्थितिवश उसे अपनी स्त्री और पुत्र को भी बेच देना पड़ा। स्वयं वह एक चाण्डाल का दास बन गया। उसने उस चाण्डाल के यहाँ कफन लेने का काम किया, किन्तु उसने इस आपत्ति के काम में भी सत्य का साथ नहीं छोड़ा। जब इसी प्रकार उसे कई वर्ष बीत गये तो उसे अपने इस नीच कर्म पर बड़ा दुख हुआ और वह इससे मुक्त होने का उपाय खोजने लगा। वह सदैव इसी चिन्ता में रहने लगा कि मैं क्या करूँ? किस प्रकार इस नीच कर्म से मुक्ति पाऊँ? एक बार की बात है, वह इसी चिन्ता में बैठा था कि गौतम् ऋषि उसके पास पहुँचे। हरिश्चन्द्र ने उन्हें प्रणाम किया और अपनी दुख-भरी कथा सुनाने लगा।

राजा हरिश्चन्द्र की दुख-भरी कहानी सुनकर महर्षि गौतम भी अत्यन्त दुखी हुए और उन्होंने राजा से कहा- ‘हे राजन! भादों के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा है। तुम उस एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करो तथा रात्रि को जागरण करो। इससे तुम्हारे सभी पाप नष्ट हो जाएंगे।’

महर्षि गौतम इतना कह आलोप हो गये। अजा नाम की एकादशी आने पर राजा हरिश्चन्द्र ने महर्षि के कहे अनुसार विधानपूर्वक उपवास तथा रात्रि जागरण किया। इस व्रत के प्रभाव से राजा के सभी पाप नष्ट हो गये। उस समय स्वर्ग में नगाड़े बजने लगे तथा पुष्पों की वर्षा होने लगी। उसने अपने सामने ब्रह्मा, विष्णु, महेश तथा देवेन्द्र आदि देवताओं को खड़ा पाया। उसने अपने मृतक पुत्र को जीवित तथा अपनी पत्नी को राजसी वस्त्र तथा आभूषणों से परिपूर्ण देखा।

व्रत के प्रभाव से राजा को पुनः अपने राज्य की प्राप्ति हुई। वास्तव में एक ऋषि ने राजा की परीक्षा लेने के लिए यह सब कौतुक किया था, परन्तु अजा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ऋषि द्वारा रची गई सारी माया समाप्त हो गई और अन्त समय में हरिश्चन्द्र अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक को गया।