सावन का महीना जारी हैं और आज 25 जुलाई को दूसरा सोमवार हैं जिसका महत्व आप सभी जानते हैं। लेकिन आज श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी हैं जिसे प्रदोष व्रत के रूप में जाना जाता हैं और सोमवार को पड़ने वाले प्रदोष व्रत को सोम प्रदोष व्रत कहा जाता हैं। कहा जाता है कि सोम प्रदोष के दिन जो व्यक्ति भगवान शंकर की पूजा करता है और व्रत करता है, वह सभी पापकर्मों से मुक्त होकर पुण्य को प्राप्त करता है और उसे उत्तम लोक में स्थान प्राप्त होता हैं। सावन में आने वाले सोम प्रदोष व्रत का विशेष महत्व होता है। आज इस कड़ी में हम आपको सोम प्रदोष व्रत के महत्व, पूजन विधि और कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। आइये जानें...
सोम प्रदोष व्रत की तिथिश्रावण मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि 25 जुलाई को शाम सवा चार बजे से प्रारंभ होकर अगले दिन यानी 26 जुलाई को शाम 06 बजकर 04 मिनट तक रहेगी। 25 जुलाई की शाम 07 बजकर 17 मिनट से लेकर रात 09 बजकर 21 मिनट तक भगवान शिव की पूजा का शुभ मुहूर्त रहेगा।
प्रदोष व्रत का महत्वसावन में पड़ने वाले सोम प्रदोष व्रत को बहुत शुभ और महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन शिवजी की उपासना करने से लोगों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। ऐसी मान्यताएं हैं कि एक प्रदोष व्रत करने का फल दो गायों को दान जितना होता है। इस व्रत के महत्व को वेदों के महाज्ञानी सूतजी ने गंगा नदी के तट पर शौनकादि ऋषियों को बताया था। उन्होंने कहा था कि कलयुग में जब अधर्म का बोलबाला रहेगा, लोग धर्म के रास्ते को छोड़ अन्याय की राह पर जा रहे होंगे उस समय प्रदोष व्रत एक माध्यम बनेगा जिसके द्वारा वो शिव की अराधना कर अपने पापों का प्रायश्चित कर सकेगा और अपने सारे कष्टों को दूर कर सकेगा।
पूजा के समय पढ़ें ये मंत्रसोम प्रदोष व्रत में भगवान शिव का पूजन किया जाता है और पूजन के दौरान ‘ओम नम: शिवाय’ मंत्र का जाप करना लाभ माना गया है। यह शिव पंचाक्षर मंत्र है और जातक की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करने में सहायक है।
सोम प्रदोष व्रत की पूजन विधिकिसी भी प्रदोष व्रत में भगवान शिव की पूजा सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक की जाती है। इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर सभी कामों ले निवृत्त होकर स्नान करके साफ-सुथरे वस्त्र धारण कर लें। भगवान शिव का मनन करते हुए व्रत का संकल्प लें। अब एक तांबे के लोटे में जल, सिंदूर और थोड़ा सा गुड़ डालकर सूर्य देव को अर्घ्य दें। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव के अलावा मां पार्वती, भगवान गणेश, भगवान कार्तिकेय और नंदी की भी पूजा की जाती है। भगवान शिव की पूजा आरंभ करें। सबसे पहले थोड़ा सा जल डालने के बाद फूल, माला के साथ दूर्वा, बेलपत्र, धतूरा, शमी की पत्तियां आदि चढ़ा दें। इसके बाद भोग लगा दें। भोग लगाने के बाद धूप-दीपक जलाकर भगवान शिव के मंत्र, चालीसा और व्रत कथा का पाठ कर लें। अंत में शिव आरती कर लें और दिनभर फलाहारी व्रत रखें।
सोम प्रदोष व्रत कथासोम प्रदोष व्रत की पौराणिक कथा के अनुसार एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति का स्वर्गवास हो गया था। उसका अब कोई आश्रयदाता नहीं था इसलिए प्रात: होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। भिक्षाटन से ही वह स्वयं व पुत्र का पेट पालती थी। एक दिन ब्राह्मणी घर लौट रही थी तो उसे एक लड़का घायल अवस्था में कराहता हुआ मिला। ब्राह्मणी दयावश उसे अपने घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बंदी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था इसलिए वह मारा-मारा फिर रहा था। राजकुमार ब्राह्मण-पुत्र के साथ ब्राह्मणी के घर रहने लगा। एक दिन अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने राजकुमार को देखा तो वह उस पर मोहित हो गई। अगले दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने लाई। उन्हें भी राजकुमार भा गया।
कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में आदेश दिया कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दिया जाए। उन्होंने वैसा ही किया। ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। उसके व्रत के प्रभाव और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुन: प्राप्त कर आनंदपूर्वक रहने लगा। राजकुमार ने ब्राह्मण-पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के महात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने दूसरे भक्तों के दिन भी फेरते हैं। अत: सोम प्रदोष व्रत करने वाले भक्तों को यह कथा अवश्य पढ़नी अथवा सुननी चाहिए। इस व्रत से शिव जी प्रसन्न होकर अपनी कृपा बरसाते हैं।