आखिर कैसे हुई कुंभ पर्व की शुरुआत, जानें इसके इतिहास के बारे में

भारत देश को अपनी संस्कृति और भक्ति के लिए जाना जाता हैं। देश में सभी व्रत और त्यौहार को बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता हैं। इसी तरह एक भक्तिमय मेला है अर्ध कुम्भ का जो हर छ: साल में आयोजित किया जाता हैं। इस बार यह मेला प्रयागराज में आयोजित किया जा रहा हैं। पौष मास की पूर्णिमा से इस मेले की शुरुआत होती है, जिसके तहत 15 जनवरी को पहला शाही स्नान किया जाएगा। लेकिन क्या आप कुभ मेले की शुरुआत के बारे में जानते हैं। आइये आज हम बताते हैं आपको इसके इतिहास के बारे में।

पौराणिक कथाओं के अनुसार सबसे ज्यादा प्रचलित कथा देव-दानवों द्वारा समुद्र मंथन की है, जिसमें अमृत निकलता है। उसे झपटने के लिए देव-दानवों में खींचतान मचती है और अमृत की कुछ बूंदें छलक जाती है। एक कथा के अनुसार, देवता और दैत्यों के युद्ध में महर्षि दुर्वासा के शापवश इंद्र समेत उनके सैनिक (देवता) दैत्यों से हार जाते हैं। विष्णु की सलाह पर सागर मंथन होता है और अमृत कुंभ के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक अविराम युद्ध होता रहा। इस मार-काट के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों (प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक) पर कलश से अमृत बूंदें गिरी थीं। कथा कहती है कि सूर्य चंद्रादि ग्रहों ने जिन राशियों में रहते हुए अमृत की रक्षा की थी, उस समय कुंभ का योग होता है। अर्थात जिस वर्ष, जिस राशि पर सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति का संयोग होता है, उसी वर्ष, उसी राशि के योग में, जहां-जहां अमृत बूंद गिरी थी, वहां-वहां कुंभ पर्व होता है।

इतिहासकारों के अनुसार, ऐतिहासिक तथ्य कुंभ पर्व को डेढ़ से दो ढाई हजार साल पहले शुरू होने की गवाही देते हैं। इससे पहले कुंभ या किसी तरह के बड़े आयोजनों का उल्लेख देखने में नहीं आया। बुद्ध से पहले (छठी सदी ई।पू) नदी मेलों का जिक्र आता है। प्रसिद्ध इतिहासकार एस बी रॉय ने नदी में स्नान का जिक्र किया है। लेकिन इस तरह के आयोजनों में ज्यादा से ज्यादा कुछ सौ लोग ही शामिल होते थे। बुद्ध के समय में आख्यानों, देशनाओं और संगीतियों के प्रसंग आए हैं पर इस तरह के आयोजनों में शामिल होने की संख्या भी कुछ सौ तक ही रहती थी। कहते जरूर हैं कि बड़े यज्ञों से-राजसूय, वाजपेय और अश्वमेध यज्ञों से मेलों आदि का चलन हुआ, लेकिन इतिहासकार दावा करते हैं कि ईसा पूर्व छह सौ साल पहले तक तो नदियों किनारे के मेलों का जिक्र मिलता है।

करीब ढाई हजार साल पहले सम्राट चंद्रगुप्त के दरबार में यूनानी दूत मेगस्थनीज ने भी राजा को इस तरह के मेलों का विवरण दिया है। तब चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में यूनान के शासक सेल्यूकस ने मेगस्थनीज को दूत बनाकर भेजा था। इसके बाद छठी शताब्दी मे चीनी यात्री ह्वेनसांग ने प्रयाग (वर्तमान इलाहाबाद) पर सम्राट हर्ष द्वारा आयोजित कुंभ में स्नान किया। हर्षवर्धन बेशक सनातन धर्म का अनुयायी था, लेकिन अन्य धर्मों के प्रति भी उदार नीति बरतता था। ह्वेनसांग ने उसकी बड़ी प्रशंसा की है। कादंबरी के लेखक बाणभट्ट उनके अनन्य मित्र थे। हर्ष की लिखी तीन नाटिकाएं नागानन्द, रत्नावली और प्रियदर्शिका संस्कृत साहित्य की अमूल्य निधियां हैं। दावे के साथ कहना कठिन है कि किस समय या उसके आसपास, कब कुंभ शुरू हुआ, लेकिन इतिहासकारों के अनुसार कुंभ पर्व हर्ष के समय या उसके आस-पास ही शुरू हुआ।