जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए इन बुरी आदतों को त्यागना बेहतर है

जीवन को सुचारू रूप से चलाने के लिए कई चीजों की आवश्यकता होती हैं। विशेषकर व्यक्ति की आदतें उसके जीवन में बहुत काम आती हैं। जो कि उसके आने वाले जीवन को निर्धारित करती हैं। व्यक्ति को अपने जीवन में कई बातों का ध्यान रखना पड़ता हैं क्योंकि कई आदतें ऐसी होती हैं जो जीवित व्यक्ति को भी मृत बना देती हैं। आज हम आपको उन्हीं बुरी आदतों के बारे में बताने जा रहे हैं जो तुलसीदास द्वारा रचित श्रीरामचरित मानस के लंकाकांड में लंका दरबार में रावण और अंगद के बीच संवाद में बताई गई हैं। और इन आदतों को जल्द त्याग देना चाहिए क्योंकि ये आदतें जोवित व्यक्ति को भी मृत बना देती है।

* कामवश


जो व्यक्ति अत्यंत भोगी हो, कामवासना में लिप्त रहता हो, जो संसार के भोगों में उलझा हुआ हो, वह मृत समान है। जिसके मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती और जो प्राणी सिर्फ अपनी इच्छाओं के अधीन होकर ही जीता है, वह मृत समान है।

* कंजूस

अति कंजूस व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जो व्यक्ति धर्म के कार्य करने में, आर्थिक रूप से किसी कल्याण कार्य में हिस्सा लेने में हिचकता हो। दान करने से बचता हो। ऐसा आदमी भी मृत समान ही है।

* अति बूढ़ा

अत्यंत वृद्ध व्यक्ति भी मृत समान होता है, क्योंकि वह अन्य लोगों पर आश्रित हो जाता है। शरीर और बुद्धि, दोनों असक्षम हो जाते हैं। ऐसे में कई बार स्वयं वह और उसके परिजन ही उसकी मृत्यु की कामना करने लगते हैं, ताकि उसे इन कष्टों से मुक्ति मिल सके।

* संतत क्रोधी

24 घंटे क्रोध में रहने वाला भी मृत समान ही है। हर छोटी-बड़ी बात पर क्रोध करना ऐसे लोगों का काम होता है। क्रोध के कारण मन और बुद्धि, दोनों ही उसके नियंत्रण से बाहर होते हैं। जिस व्यक्ति का अपने मन और बुद्धि पर नियंत्रण न हो, वह जीवित होकर भी जीवित नहीं माना जाता है।

* निंदक

अकारण निंदा करने वाला व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जिसे दूसरों में सिर्फ कमियां ही नजर आती हैं। जो व्यक्ति किसी के अच्छे काम की भी आलोचना करने से नहीं चूकता। ऐसा व्यक्ति जो किसी के पास भी बैठे तो सिर्फ किसी ना किसी की बुराई ही करे, वह इंसान मृत समान होता है।

* अघ खानी

जो व्यक्ति पाप कर्मों से अर्जित धन से अपना और परिवार का पालन-पोषण करता है, वह व्यक्ति भी मृत समान ही है। उसके साथ रहने वाले लोग भी उसी के समान हो जाते हैं। हमेशा मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके ही धन प्राप्त करना चाहिए। पाप की कमाई पाप में ही जाती है।