जानें गोवर्धन पूजा का क्या है शुभ मुहूर्त व कथा, श्रीकृष्ण ने शुरू की थी की ये परंपरा

दिवाली के एक दिन बाद गोवर्धन पूजा की जाती है। इस दिन प्रकृति के आधार, पर्वत के रूप में गोवर्धन की पूजा की जाती है और समाज के आधार के रूप में गाय की पूजा की जाती है। इस पूजा को ‘अन्नकूट पूजा’ भी कहा जाता है। इस दिन लोग अपने घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत का चित्र बनाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करते हैं और इसके चारों तरफ परिक्रमा लगाते हैं। इसके बाद भगवान को अन्नकूट का भोग लगाकर सभी को प्रसाद बांट दिया जाता है। भगवान अन्नकूट की पूजा के बाद व्रत कथा का पाठ किया जाता है। गोवर्धन पर्वत उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के अंतर्गत एक नगर पंचायत है। गोवर्धन व इसके आसपास के क्षेत्र को ब्रज भूमि भी कहा जाता है। यह भगवान श्री कृष्ण की लीलास्थली है। यहीं पर भगवान श्री कृष्ण ने द्वापर युग में ब्रजवासियों को इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिये गोवर्धन पर्वत अपनी कनिष्ठ अंगुली पर उठाया था। गोवर्धन पर्वत को भक्तजन गिरिराज जी भी कहते हैं। तो आइये आज हम आपको बताते है गोवर्धन पूजा कैसे करनी चाहिए और इसको करने का उचित समय कौनसा है...

कैसे होती है अन्नकूट की पूजा?

- वेदों में इस दिन वरुण, इंद्र, अग्नि की पूजा की जाती है

- साथ में गायों का श्रृंगार करके उनकी आरती की जाती है और उन्हें फल मिठाइयां खिलाई जाती हैं

- गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की प्रतिकृति बनाई जाती है

- इसके बाद उसकी पुष्प, धूप, दीप से उपासना की जाती है

- इस दिन एक ही रसोई से घर के हर सदस्य का भोजन बनता है

- भोजन में विविध प्रकार के पकवान बनाए जाते हैं

किस प्रकार करें गोवर्धन पूजा?

सबसे पहले प्रातः काल उठकर शरीर पर तेल मलकर स्नान करें फिर उसके बाद घर के मुख्य द्वार या आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाएं उसके पास में ग्वाल बाल, पेड़ पौधों की आकृति बनाएं, मध्य में भगवान कृष्ण की मूर्ति रख दें। इसके बाद भगवन कृष्ण, ग्वाल-बाल और गोवर्धन पर्वत का षोडशोपचार पूजन करें, पकवान और पंचामृत का भोग लगाएं। इसके बाद गोवर्धन पूजा की कथा सुनें इसके बाद पूरा परिवार प्रसाद ग्रहण करें और सब मिलकर साथ में भोजन करें।

गोवर्द्धन पूजा का शुभ मुहूर्त

तिथि: 28 अक्‍टूबर 2019

प्रतिपदा तिथि आरंभ

28 अक्टूबर सुबह 09:08 मिनट

प्रतिपदा तिथि समाप्त

29 अक्टूबर सुबह 06:13 मिनट तक

गोवर्द्धन पूजा सांयकाल मुहूर्त

दोपहर 03:23 मिनट से शाम 05:36 मिनट तक

कुल अवधि: 02 घंटे 12 मिनट

गोवर्धन कथा

एक बार भगवान श्रीकृष्ण अपने सखाओं, गोप-ग्वालों के साथ गाएं चराते हुए गोवर्धन पर्वत की तराई में जा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि नाच-गाकर खुशियां मनाई जा रही हैं। जब श्रीकृष्ण ने इसका कारण पूछा तो गोपियों ने कहा- आज मेघ व देवों के स्वामी इंद्र का पूजन होगा। पूजन से प्रसन्न होकर वे वर्षा करते हैं, जिससे अन्न पैदा होता है तथा ब्रजवासियों का भरण-पोषण होता है। तब श्रीकृष्ण बोले- इंद्र में क्या शक्ति है? उससे अधिक शक्तिशाली तो हमारा गोवर्धन पर्वत है। इसी के कारण वर्षा होती है। हमें इंद्र से भी बलवान गोवर्धन की ही पूजा करना चाहिए। तब सभी श्रीकृष्ण की बात मानकर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। यह बात जाकर नारद ने देवराज इंद्र को बता दी। यह सुनकर इंद्र को बहुत क्रोध आया। इंद्र ने मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर मूसलधार बारिश करें। बारिश से भयभीत होकर सभी गोप-ग्वाले श्रीकृष्ण की शरण में गए और रक्षा की प्रार्थना करने लगे। गोप-गोपियों की पुकार सुनकर श्रीकृष्ण बोले- तुम सब गोवर्धन-पर्वत की शरण में चलो। वह सब की रक्षा करेंगे। सब गोप-ग्वाले पशुधन सहित गोवर्धन की तराई में आ गए। श्रीकृष्ण ने गोवर्धन को अपनी उंगली पर उठाकर छाते-सा तान दिया।

गोप-ग्वाले सात दिन तक उसी की छाया में रहकर अतिवृष्टि से बच गए। सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर एक जल की एक बूंद भी नहीं पड़ी। यह चमत्कार देखकर ब्रह्माजी द्वारा श्रीकृष्णावतार की बात जान कर इंद्रदेव अपनी मूर्खता पर पश्चाताप करते हुए कृष्ण से क्षमा याचना करने लगे। श्रीकृष्ण ने सातवें दिन गोवर्धन को नीचे रखा और ब्रजवासियों से कहा कि- अब तुम प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाया करो। तभी से यह पर्व गोवर्धन पूजा के रूप में प्रचलित है।