Govardhan 2019: पुलस्य ऋषि के श्राप की वजह से रोज़ एक मुट्ठी घट रहा गोवर्धन पर्वत

दिवाली का त्यौंहार अपने साथ कई खुशियां लेका आता हैं। दिवाली के अगले दिन भी इसकी रौनक बनी रहती हैं क्योंकि दिवाली के अगले दिन घरों के बाहर गोबर का प्रतिकात्मक गोवर्धन पर्वत मनाया जाता हैं और इसकी परिक्रमा कर पूजा की जाती हैं। भगवान श्रीकृष्ण ने इंद्र देव के प्रकोप से वृदांवन, मथुरा और गोकुल वासियों को बचाने के लिए अपनी छोटी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठाया था। तभी से इस पूजा का प्रचलन हैं। लेकिन पहले यह गोवर्धन पर्वत बहुत उंचा हुआ करता था जो की अब घटकर कुछ मीटर ही रह गया हैं और इसका कारण हैं पुलस्य ऋषि का श्राप।

गर्ग संहिता के मुताबिक एक बार पुलस्य ऋषि भ्रमण के दौरान द्रोणाच पहुंचे। वहां उन्हें यह गोवर्धन पर्वत दिखा। इस पर्वत की रमणीयता देख उन्होंने इसे अपने साथ ले जाने की इच्छा व्यक्त की। इस संबंध में उन्होंने गोवर्धन के पिता द्रोणाचल से बात की। तब गोवर्धन ने यह शर्त रखी कि जहां भी ऋषिवर उन्हें रखेंगे, वे वहीं स्थापित हो जाएंगे।

पुलस्य ऋषि बहुत प्रसन्नता से गोवर्धन पर्वत को लेकर काशी की ओर जा रहे थे। तभी ब्रज पहुंचते ही उन्हें लघुशंका हुई। इसके चलते उन्होंने ब्रज में रास्ते के किनारे गोवर्धन को रख दिया। उन्होंने लौटकर गोवर्धन पर्वत को उठाने का बहुत प्रयास किया किंतु वे असफल रहे। ऐसे में उन्हें क्रोध आ गया और गोवर्धन को श्राप देते हुए कहा कि हर रोज़ धीरे-धीरे तुम्हारा क्षरण होगा और एक दिन तुम पूरी तरह धरती में समा जाओगे। ऐसा कह वे काशी की ओर लौट गए।