आंवला नवमी 2019: देवी लक्ष्मी की कृपा से बरसने लगे सोने के आंवले, जानें रोचक कथा

आंवले का औषधीय महत्व तो सभी जानते हैं कि किस तरह यह शरीर को स्वस्थ बनाए रखता हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आंवले का पौराणिक महत्व भी हैं और इसके लिए कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को आंवला नवमी के रूप में मनाया जाता है। इसे अक्षय नवमी के नाम से भी जाना जाता हैं और आज के दिन किया गया कोई भी शुभ कार्य अक्षय फल देने वाला होता है। इस दिन द्वापर युग का प्रारंभ भी हुआ था। आंवला नवमी का व्रत संतान और पारिवारिक सुखों की प्राप्ति के लिए किया जाता है। आज हम आपको आंवला नवमी की रोचक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं जिसमें देवी लक्ष्मी की कृपा से सोने के आंवले बरसने लगे थे। तो आइये जानते हैं इस कथा के बारे में।

आंवला नवमी और शंकराचार्य की कथा

कथा के अनुसार एक बार जगद्गुरु आदि शंकराचार्य भिक्षा मांगने एक कुटिया के सामने रुके। वहां एक बूढ़ी औरत रहती थी, जो अत्यंत गरीबी और दयनीय स्थिति में थी। शंकराचार्य की आवाज सुनकर वह बूढ़ी औरत बाहर आई। उसके हाथ में एक सूखा आंवला था। वह बोली महात्मन मेरे पास इस सूखे आंवले के सिवाय कुछ नहीं है जो आपको भिक्षा में दे सकूं।

शंकराचार्य को उसकी स्थिति पर दया आ गई और उन्होंने उसी समय उसकी मदद करने का प्रण लिया। उन्होंने अपनी आंखें बंद की और मंत्र रूपी 22 श्लोक बोले। ये 22 श्लोक कनकधारा स्तोत्र के श्लोक थे। मां लक्ष्मी ने दिव्य दर्शन दिए इससे प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी ने उन्हें दिव्य दर्शन दिए और कहा कि शंकराचार्य, इस औरत ने अपने पूर्व जन्म में कोई भी वस्तु दान नहीं की। यह अत्यंत कंजूस थी और मजबूरीवश कभी किसी को कुछ देना ही पड़ जाए तो यह बुरे मन से दान करती थी। इसलिए इस जन्म में इसकी यह हालत हुई है। यह अपने कर्मों का फल भोग रही है इसलिए मैं इसकी कोई सहायता नहीं कर सकती।

शंकराचार्य ने देवी लक्ष्मी की बात सुनकर कहा- हे महालक्ष्मी इसने पूर्व जन्म में अवश्य दान-धर्म नहीं किया है, लेकिन इस जन्म में इसने पूर्ण श्रद्धा से मुझे यह सूखा आंवला भेंट किया है। इसके घर में कुछ नहीं होते हुए भी इसने यह मुझे सौंप दिया। इस समय इसके पास यही सबसे बड़ी पूंजी है, क्या इतना भेंट करना पर्याप्त नहीं है। शंकराचार्य की इस बात से देवी लक्ष्मी प्रसन्न हुई और उसी समय उन्होंने गरीब महिला की कुटिया में स्वर्ण के आंवलों की वर्षा कर दी।