गरुड़ पुराण के रहस्यों से जानिए मृत्यु के बाद आत्मा को क्यों मिलती है प्रेत योनि, कौन से कर्म बनते हैं कारण

गरुड़ पुराण हिंदू धर्म के 18 महापुराणों में से एक है, जिसमें भगवान विष्णु और उनके वाहन गरुड़ देव के बीच हुए संवाद का जिक्र किया गया है। यह ग्रंथ केवल धार्मिक या आध्यात्मिक दृष्टिकोण से ही नहीं, बल्कि जीवन और मृत्यु के रहस्यों को उजागर करने के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसमें मृत्यु के बाद आत्मा की यात्रा, विभिन्न योनियों, कर्मफल, स्वर्ग-नरक और प्रेत योनि के रहस्यों के बारे में विस्तार से बताया गया है।

गरुड़ पुराण के अनुसार, मृत्यु के बाद आत्मा की अगली गति उसके जीवन में किए गए कर्मों (पाप और पुण्य) पर निर्भर करती है। प्रेत योनि उन आत्माओं को मिलती है जो कुछ विशेष प्रकार के दोषपूर्ण कर्म करती हैं या जिनकी मृत्यु विशेष परिस्थितियों में होती है।

पाप कर्म और दोषपूर्ण आचरण

गरुड़ पुराण के अनुसार, वे मनुष्य जो अपने जीवन में बहुत अधिक पाप करते हैं—जैसे कि दूसरों को जानबूझकर कष्ट पहुँचाना, चोरी, धोखाधड़ी, कपट, पराई स्त्री पर कुदृष्टि डालना, धर्म के विरुद्ध आचरण करना—ऐसे लोगों की आत्मा को मृत्यु के बाद प्रेत योनि प्राप्त होती है।

जो लोग लालच में आकर दूसरों का धन हड़पते हैं या बिना ज़रूरत के किसी की संपत्ति में हिस्सा बनते हैं, उन्हें भी प्रेत योनि का दंड भोगना पड़ता है।

दान न देने या उपेक्षा से भी होता है दुष्प्रभाव

अगर कोई व्यक्ति प्यासे को पानी नहीं देता, भूखे को अन्न नहीं देता, या ब्राह्मणों का अपमान करता है, तो उसकी आत्मा को भी प्रेत योनि का मार्ग मिल सकता है। श्राद्ध कर्म में लापरवाही करने वाले या अनुचित आचरण करने वाले लोगों को भी मृत्यु के बाद शांति नहीं मिलती।

असामान्य और अकाल मृत्यु का प्रभाव

आत्महत्या, हत्या, एक्सीडेंट, सांप के काटने, या किसी जानवर द्वारा मारे जाने जैसी अप्राकृतिक मौतों से मरने वालों को अगला शरीर प्राप्त नहीं होता। ऐसे लोगों की आत्मा को प्राकृतिक विदाई नहीं मिलती, जिसके कारण वह आत्मा भटकती रहती है। जिनकी मृत्यु अतृप्त इच्छाओं, क्रोध, या मोह-माया के कारण होती है, उनकी आत्मा भी अशांति की स्थिति में रह जाती है और प्रेत योनि में जाती है।

अधूरे कर्म और अंतिम संस्कार की कमी

जिन आत्माओं को उचित अंतिम संस्कार, श्राद्ध, या पिंडदान नहीं मिलते, वे मृत्यु के बाद भी धरती पर भटकती रहती हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार, इन धार्मिक कर्मों की पूर्ति से ही आत्मा को शांति और सद्गति प्राप्त होती है।

मोह-माया से जुड़ी आत्माएं


जो आत्माएं अपने जीवन में अत्यधिक भौतिक मोह—जैसे परिवार, संपत्ति, या इच्छाओं से जुड़ी रहती हैं, वे मृत्यु के बाद भी उसी मोह में बंधी रहती हैं और प्रेत योनि में भटकती रहती हैं।

प्रेत योनि से मुक्ति के उपाय

गरुड़ पुराण कहता है कि प्रेत योनि से मुक्ति पाने के लिए व्यक्ति को जीवन में सत्कर्म, दान-पुण्य, और धार्मिक कार्य करने चाहिए। मृत्यु के बाद उचित श्राद्ध, पिंडदान, और विशेष रूप से प्रेत घट दान करने से आत्मा को मुक्ति मिलती है। घर में गरुड़ पुराण का पाठ या भागवत कथा करवाने से आत्मा को शांति और आगे की गति मिलती है।