हिन्दू धर्म में कई मान्यताएं और त्यौहार हैं जिनका सदियों से पालन किया जा रहा है। खासतौर से हिन्दू धर्म में सुहागन स्त्रियों के लिए कई व्रत का उल्लेख पाया जाता हैं, उन्हीं में से एक व्रत हैं वट सावित्री व्रत जो आज 3 जून को हैं। हर साल ज्येष्ठ कृष्ण अमावस्या को वट सावित्री व्रत रखा जाता हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार आज ही के दिन सावित्री ने यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राणों की रक्षा की थी। इसलिए हर सुहागन आज के दिन अपने पति की दीर्घायु के लिए व्रत रखती हैं। आज हम आपके लिए इस व्रत की पूर्ण पूजन विधि की जानकारी लेकर आए हैं।
शास्त्रों के अनुसार, वट सावित्री व्रत में पूजन सामग्री का खास महत्व होता है। ऐसी मान्यता है कि सही पूजन सामग्री के बिना की गई पूजा अधूरी ही मानी जाती है। पूजन सामग्री में बांस का पंखा, चना, लाल या पीला धागा, धूपबत्ती, फूल, कोई भी पांच फल, जल से भरा पात्र, सिंदूर, लाल कपड़ा आदि का होना अनिवार्य है।
इस दिन महिलाएं सुबह उठकर नित्यकर्म से निवृत होने के बाद स्नान आदि कर शुद्ध हो जाएं। फिर नए वस्त्र पहनकर, सोलह श्रृंगार करें। इसके बाद पूजन की सारी सामग्री को एक टोकरी, प्लेट या डलिया में सही से रख लें। फिर वट (बरगद) वृक्ष के नीचे सफाई करने के बाद वहां सभी सामग्री रखने के बाद स्थाग ग्रहण करें। इसके बाद सबसे पहले सत्यवान और सावित्री की मूर्ति को वहां स्थापित करें। फिर अन्य सामग्री जैसे धूप, दीप, रोली, भिगोए चने, सिंदूर आदि से पूजन करें।
इसके बाद लाल कपड़ा अर्पित करें और फल समर्पित करें। फिर बांस के पंखे से सावित्री-सत्यवान को हवा करें और बरगद के एक पत्ते को अपने बालों में लगाएं। इसके बाद धागे को पेड़ में लपेटते हुए जितना संभव हो सके 5,11, 21, 51 या 108 बार बरगद के पेड़ की परिक्रमा करें। अंत में सावित्री-सत्यवान की कथा पंडितजी से सुनने के बाद उन्हें यथासंभव दक्षिणा दें या कथा खुद भी पढ़ सकती हैं। इसके बाद घर आकर उसी पंखें से अपने पति को हवा करें और उनसे आशीर्वाद लें। फिर प्रसाद में चढ़े फल आदि ग्रहण करने के बाद शाम के वक्त मीठा भोजन करें।