श्राद्ध के इन नियमों में ना करें गलतियां, पड़ सकता हैं उल्टा प्रभाव

आज अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकम हैं और आज से अमावस्या तक के दिन पितृ पक्ष के रूप में जाने जाते हैं। मान्यता हैं कि इन दिनों में पित्तर धरती पर आते हैं और उनका आशीर्वाद पाने के लिए लोग श्राद्ध करते हैं। श्राद्ध के कुछ नियम होते हैं जिनकी पालना की जाए तो शुभ फल प्राप्त होते है। लेकिन इन नियमों में की गई गलतियां आपके जीवन पर उल्टा प्रभाव भी डाल सकती हैं। आज हम आपके लिए सामान्यतया श्राद्ध के समय होने वाली कुछ गलतियों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनका ध्यान रखना बेहद जरूरी हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।

- पितरों के निमित्त सारी क्रियाएं गले में दाएं कंधे मे जनेउ डाल कर और दक्षिण की ओर मुख करके की जाती है।

- श्राद्ध का समय हमेशा जब सूर्य की छाया पैरों पर पड़ने लग जाए तब उचित होता है, अर्थात दोपहर के बाद ही शास्त्र सम्मत है। सुबह-सुबह अथवा 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुंचता है। ऐसे में पितर नाराज हो सकते हैं।

- श्राद्ध के दिन लहसुन, प्याज रहित सात्विक भोजन ही घर की रसोई में बनना चाहिए।

- उड़द की दाल, बडे, चावल, दूध, घी से बने पकवान, खीर, मौसमी सब्जी जैसे तोरई, लौकी, सीतफल, भिण्डी कच्चे केले की सब्जी ही भोजन में मान्य है।

- आलू, मूली, बैंगन, अरबी तथा जमीन के नीचे पैदा होने वाली सब्जियां पितरों को नहीं चढ़ती है।

- श्राद्ध के नाम पर सुबह-सुबह हलवा- पूरी बनाकर मन्दिर में और पंडित को देने से श्राद्ध का फर्ज पूरा नहीं होता है। ऐसे श्राद्धकर्ता को उसके पितृगण कोसते हैं क्योंकि उस थाली को पंडित भी नहीं खाता है बल्कि कूड़ेदान में फेंक देता है। जहां सूअर, आवारा कुत्ते आदि उसे खाते हैं।