देवी-देवता की आरती करतें वक़्त भूलकर भी न करें ये गलतियां

किसी भी देवी-देवता की पूजा के अंत में, उस देवी-देवता की आरती जरूर की जाती हैं। पूजा के दौरान आरती का विशेष महत्व होता हैं। पूजन का समापन आरती से ही होता हैं। ऐसे माना जाता है की अगर पूजन करते समय हमसे कोई गलती हुई हो तो आरती करने से भगवान उन गलतियों को माफ़ कर देते हैं। लेकिन कई लोगों के आरती करने का भी सही तरीका पता नहीं होता जिस कारण से वे आरती में भी गलतियां करते हैं। इसलिये हम आज लेकर आये हैं कुछ ऐसी आरती के दौरान की जाने वाली गलतियां और नियम जिन्हें जानकर आप भगवान को अच्छे से प्रसन्न कर सकें।

* जब भी आरती करें उसमें घंटी और शंख का वादन अवश्य होना चाहिए। इससे जहां वातावरण शुद्ध होता है, आपके घर की सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा इन पवित्र ध्वनियों की गूंज से बाहर हो जाती है और आपकी प्रार्थना बिना किसी बाधा के भगवान तक पहुंचती है।

* थूक के द्वारा मनुष्य अपने शरीर की गदंगी को बाहर करता है। देवी-देवताओं का ध्यान या जप करते समय ऐसी कोई भी क्रिया करना वर्जित माना गया है। मनुष्य को अपने मन के साथ-साथ शरीर को भी पूरी तरह से शुद्ध करने के बाद ही भगवान की पूजा-अर्चना करना चाहिए। यदि पूजा या ध्यान के बीच में शरीर संबंधी कोई भी क्रिया करनी पड़े तो फिर से नहाने के बाद ही देव-पूजा करनी चाहिए।

* इसके अलावा दीपों या बातियों की संख्या में यह अवश्य रखें कि यह एक, पांच या सात के क्रम में हो। अगर आरती के लिए कपूर का प्रयोग कर रहे हों तो उसमें भी यही नियम लागू होगा।

* आरती के पांच अंग माने गए हैं – पहला दीपक, दूसरा शुद्ध जल या गंगाजल युक्त शंख, तीसरा स्वच्छ वस्त्र, चौथा आम या पीपल के पवित्र पत्ते और पांचवा दंडवत प्रणाम करना। इसलिए आरती चाहे प्रात:काल की हो या संध्याकालीन, या किसी विशेष पूजा की आरती, उसमें इन पांचों विधियों का क्रमानुसार पालन अवश्य किया जाना चाहिए।

* जो मनुष्य सुबह उठने के बाद भी उबासी लेता रहता है या नींद की अवस्था में रहता है, उसे भगवान की पूजा-अर्चना करने की मनाही है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, सुबह जल्दी उठ कर, स्नान आदि काम पूरे करके, आलस-नींद जैसे भावों को मन से दूर करके ही भगवान का ध्यान या जप करना चाहिए।

* शंख में रखे जल को आरती में उपस्थित सभी लोगों पर छिड़काव करना चाहिए। इससे उन्हें पूजा का पूर फल प्राप्त होता है और जीवन की परेशानियां समाप्त होती हैं।

* भगवान की पूजा-अर्चना करने से पहले मनुष्य को अपने मन और अपने तन दोनों की शुद्धि करना बहुत जरूरी होता है। जो मनुष्य शराब पीता या नशा करता है, उसके सभी पुण्य कर्म नष्ट हो जाते हैं और उसे नर्क की प्राप्ति होती है। भगवान का ध्यान या जप करते समय नशे के बारे में सोचना भी महापाप माना गया है।

* आरती करने में दीप घुमाने की संख्या और इसकी विधि भी महत्वपूर्ण है। आरती शुरु करते हुए सर्वप्रथम इसे भगवान के चरणों में चार बार, तत्पश्चात नाभि के पास दो बार घुमाते हुए मुखमंडल पर दीपक ले जाएं और वहां एक बार घुमाएं। इसके पश्चात समस्त अंगों पर कम से कम सात बार या इससे अधिक आरती घुमाएं।