व्रतपर्वोत्सव के अनुसार - एक बार यमराज ने अपने दूतों से कहा कि तुम लोग मेरी आज्ञा से मृत्युलोक के प्राणियों के प्राण हरण करते हो, क्या तुम्हें ऐसा करते समय कभी दु:ख भी हुआ है या कभी दया भी आयी है?
इस पर यमदूतों ने कहा - महाराज! हम लोगों का कर्म अत्यन्त क्रूर हैं परंतु किसी युवा प्राणी की असामयिक मृत्यु पर उसके प्राण हरतेे समय वहां का करुण क्रन्दन सुनकर हम लोगों का हृदय भी विचलित हो जाता है। एक बार हम लोगों को एक राजकुमार के प्राण उसके विवाह के चौथे दिन ही हरण करने पड़े। उस समय वहां का माहौल व चीत्कार और हाहाकार देख-सुनकर हमें अपने कर्म से अत्यंत घृणा हो गयी। उस समय का माहौल देखकर हम अत्यंत दु:खी हो गये। यमदूतों ने यमराज जी से यह विनती की कोई ऐसा उपाय बताये जिस से अकाल मृत्यु के लेख से मुक्त हो जायें।
यमदूतों के इस अनुरोध पर यमराज देव बोले - अकाल मृत्यु तो कर्म गति है इससे मुक्ति का एक आसान तरीका मैं तुम्हें बताता हूं - कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को रात में मेरे नाम का दीप दक्षिण दिशा की ओर जो भी जलायेगा, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं होगा।