रामयण की कथा तो हम अपने बचपन से ही सुनते आ रहे है। रामायण के सभी मशहूर पात्रों से आमतौर पर हम सभी परिचित हैं। प्रभु राम, दशरथ, मां सीता, लक्ष्मण या पूरा रावण खानदान ही क्यों न हो प्रायः हम उन सभी के चरित्रों से पूरी तरह रूबरू होने का दावा तो करते ही हैं। इन सबके बारे में हमने सामान्यः वाल्मीकि रामायण या तुलसीकृत रामायण में पढ़ रखा है। इसके अलावा कई लोककृतियों व लोकगानों में इन चरित्रों की कथा कुछ अलग रूप में भी मिलती है। आज हम आपको अपने बताने जा रहे हैं, रामायण के एक प्रमुख पात्र और लंकापति रावण के भाई कुंभकर्ण के बारे में। आइये जानते हैं कुंभकर्ण से जुड़ी कुछ रोचक और अनसुनी बातें।
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रावण,
विभीषण और कुंभकर्ण तीनों भाईयों ने ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी। तपस्या से प्रसन्न होकर जब ब्रह्माजी प्रकट हुए तो कुंभकर्ण को वरदान देने से पहले चिंतित थे। ब्रह्माजी की चिंता का कारण ये था कि यदि कुंभकर्ण हर रोज भरपेट भोजन करेगा तो जल्दी ही पूरी सृष्टि नष्ट हो जाएगी। इस कारण ब्रह्माजी ने सरस्वती के द्वारा कुंभकर्ण की बुद्धि भ्रमित कर दी थी। कुंभकर्ण ने मतिभ्रम के कारण 6 माह तक सोते रहने का वरदान मांग लिया।
* लंकापति रावण का भाई कुंभकर्ण अत्यंत बलवान था। और इस से टक्कर लेने वाला कोई भी योद्धा पूरे जगत में नहीं था। ब्रह्मा जी के वरदान के कारण वह मदिरा पीकर 6 महीने तक सोता रहता था। लेकिन जब कुंभकर्ण जागता था तो तीनों लोकों में हाहाकार मच जाता था।
* शोधकारों के अनुसार कुम्भकर्ण एक वैज्ञानिक था, जिसे अपने अत्याधुनिक व अकल्पनीय शोधों के लिए गोपनीय स्थान पर जाना पड़ता था। मान्यतानुसार ये गोपनीय स्थान किष्किंधा के दक्षिण में किसी गुफा में था, जहां पर उसने आश्चर्यजनक रूप से एक भारी-भरकम प्रयोगशाला स्थापित कर रखी थी। वह अधिकांश वक्त इसी स्थान पर अपने सहयोगियों के साथ गंभीर व उन्नत किस्म के प्रयोग करता रहता था।
* श्रीराम और रावण, दोनों की सेनाओं के बीच घमासान युद्ध होने लगा, उस समय कुंभकर्ण सो रहा था। जब रावण के कई महारथी मारे जा चुके थे, तब कुंभकर्ण को जगाने का आदेश दिया गया। कई प्रकार के उपायों के बाद जब कुंभकर्ण जागा और उसे मालूम हुआ कि रावण ने सीता का हरण किया है तो उसे बहुत दुख हुआ था।
* कुंभकर्ण को पाप-पुण्य और धर्म-कर्म से कोई लेना-देना नहीं था। वह तो हर 6 माह में एक बार जागता था। उसका पूरा एक दिन भोजन करने में और सभी का कुशल-मंगल जानने में व्यतीत हो जाता था। रावण के अधार्मिक कार्यों में उसका कोई सहयोग नहीं होता था। कुंभकर्ण राक्षस जरूर था, लेकिन अधर्म से दूर ही रहता था। इसी वजह से स्वयं देवर्षि नारद ने कुंभकर्ण को तत्वज्ञान का उपदेश दिया था।