धनतेरस के दिन पूजा करने से नहीं रहती है आर्थिक तंगी, जानें इससे जुड़ी पौराणिक कथा

कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदसी तिथि को धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता हैं। यह दिवाली से दौ दिन पूर्व आता है और अपने साथ दीपों की रौशनी लेकर आता हैं। इस दिन सभी लोग कपड़ों और गहनों की खरीददारी करते है, जो कि शुभ होता हैं। लेकिन क्या आप धनतेरस के पीछे का इतिहास जानते हैं। अगर नहीं जानते है तो कोई बात नहीं, आज हम आपको बताने जा रहे हैं धनतेरस के इतिहास के बारे में जो भगवान धनवन्तरि से जुड़ा हुआ हैं। तो आइये जानते है इसके बारे में।

कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदसी को भगवान धनवन्तरि का अवतार हुआ था। शृष्टि के जीवों को रोग मुक्त करने के लिए भगवान धनवन्तरि आगे बढे। यक्ष राज सुमेर ने कुबेर पर आक्रमण करके कुबेर की सारी सम्पत्ति पर कब्जा कर लिया था। कुबेर को जंजीरों में जकड कर एक खाईं में डाल दिया था दर्द से कुबेर कराह रहे थे। कुबेर की आवाज सुनकर भगवान धनवन्तरि उनके पास पहुचे, कुबेर को बंधन मुक्त किया।

भगवान धनवन्तरि ने महालक्ष्मी का आहवाहन किया। माता महालक्ष्मी ने कुबेर को पुन:स्वर्ण, कनक तथा रत्नों के भण्डार दिये। यक्ष सुमेर को पराजित कर केराज्य वापस दिलाया। तथा कुबेर को वरदान दिये। देवों ने अम्बर से पुष्प बरसाये।

रिषियों मुनियों ने मिलकर भगवान धनवन्तरि, महालक्ष्मी तथा कुबेर की पूजा की तब से धरती पर त्रयोदसी तिथि धन तेरस के नाम से जानी गयी। तीनों देवताओं ने रिषियों को वरदान दिया। आज के दिन जो ऩये पात्र, स्वर्ण आभूषण आदि खरीद कर पूजन करेगा उसको कभी धन सम्पदा की कमी नही रहेगी।