अकाल मृत्यु से छुटकारा पाने के लिए करें धनतेरस के दिन पूजन, जानें इससे जुड़ी व्रत कथा

दिवाली का त्योहार केवल एक त्योहार ही नहीं होता है बल्कि यह कई दिनों का त्योहार होता है जिसमें हर दिन का अपना विशेष महत्व होता हैं। दिवाली के त्योहार की शुरुआत कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि अर्थात धनतेरस के साथ हो जाती हैं। दिवाली से दौ दिन पहले मनाए जाने वाले इस त्योहार पर भगवान धन्वंतरि और कुबेर की पूजा की जाती हैं। माना जाता है कि धनतेरस के दिन दीपदान करने से अकाल मृत्यु के भय से छुटकारा प्राप्त होता हैं। आज हम आपकी इससे जुडी व्रत कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते है इस बारे में।

एक समय यमराज ने अपने दूतों से पूछा कि क्या कभी तुम्हें प्राणियों के प्राण का हरण करते समय किसी पर दयाभाव भी आया है, तो वे संकोच में पड़कर बोले- नहीं महाराज! यमराज ने उनसे दोबारा पूछा तो उन्होंने संकोच छोड़कर बताया कि एक बार एक ऐसी घटना घटी थी, जिससे हमारा हृदय कांप उठा था। हेम नामक राजा की पत्नी ने जब एक पुत्र को जन्म दिया तो ज्योतिषियों ने नक्षत्र गणना करके बताया कि यह बालक जब भी विवाह करेगा, उसके चार दिन बाद ही मर जाएगा। यह जानकर उस राजा ने बालक को यमुना तट की एक गुफा में ब्रह्मचारी के रूप में रखकर बड़ा किया।

एक दिन जब महाराजा हंस की युवा बेटी यमुना तट पर घूम रही थी तो उस ब्रह्मचारी युवक ने मोहित होकर उससे गंधर्व विवाह कर लिया। चौथा दिन पूरा होते ही वह राजकुमार मर गया। अपने पति की मृत्यु देखकर उसकी पत्नी बिलख-बिलखकर रोने लगी। उस नवविवाहिता का करुण विलाप सुनकर हमारा हृदय भी कांप उठा। उस राजकुमार के प्राण हरण करते समय हमारे आंसू नहीं रुक रहे थे। तभी एक यमदूत ने पूछा -क्या अकाल मृत्यु से बचने का कोई उपाय नहीं है?

यमराज बोले- हां उपाय तो है। अकाल मृत्यु से छुटकारा पाने के लिए व्यक्ति को धनतेरस के दिन पूजन और दीपदान विधिपूर्वक करना चाहिए। जहां यह पूजन होता है, वहां अकाल मृत्यु का भय नहीं सताता। कहते हैं कि तभी से धनतेरस के दिन यमराज के पूजन के पश्चात दीपदान करने की परंपरा प्रचलित हुई।