धनतेरस पर ये एक चीज खरीदना बेहद शुभ, घर आते ही आपको कर देगी मालामाल

कार्तिक मास की कृष्ण त्रयोदशी को धनतेरस कहते हैं। यह त्योहार दीपावली आने की पूर्व सूचना देता है। इस दिन से पांच दिवसीय दिवाली के त्योहार की शुरुआत हो जाती है। साल 2021 में धनतेरस का त्योहार 2 नवंबर को मनाया जाएगा। धनत्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरी जन्म हुआ था और इसीलिए इस दिन को धनतेरस के रूप में पूजा जाता है। दीपावली से पहले आने वाले इस त्योहार को लोग काफी धूमधाम से मनाते हैं। इस दिन गहनों और बर्तन की खरीदारी जरूर की जाती है। इस बार धनतेरस पर खास बात यह है कि इस दिन धन योग बन रहा है, इस योग के बनने से धनतेरस पर किया गया निवेश आने वाले समय में काफी फायदेमंद साबित हो सकता है।

भगवान धनवंतरी के पूजन का महत्व

शास्त्रों के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान त्रयो‍दशी के दिन भगवान धनवंतरी प्रकट हुए थे, इसलिए इस दिन को धन त्रयोदशी कहा जाता है। धन और वैभव देने वाली इस त्रयोदशी का विशेष महत्व माना गया है।

शास्त्रों के अनुसार समुद्र मंथन के समय बहुत ही दुर्लभ और कीमती वस्तुओं के अलावा शरद पूर्णिमा का चंद्रमा, कार्तिक द्वादशी के दिन कामधेनु गाय, त्रयोदशी को धनवंतरी और कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को भगवती लक्ष्मी जी का समुद्र से अवतरण हुआ था। यही वजह है कि दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन और उसके दो दिन पहले त्रयोदशी को भगवान धनवंतरी का जन्म दिवस धनतेरस के रूप में मनाया जाता है। भगवान धनवंतरी को हिंदू धर्म में देव वैद्य का पद हासिल है। कुछ ग्रंथों में उन्हें विष्णु का अवतार भी कहा गया है।

भगवान धनवंतरी को प्रिय है पीतल

भगवान धनवंतरी को नारायण भगवान विष्णु का ही एक रूप माना जाता है। इनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें से दो भुजाओं में वे शंख और चक्र धारण किए हुए हैं। दूसरी दो भुजाओं में औषधि के साथ वे अमृत कलश लिए हुए हैं।

शास्त्रों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि यह अमृत कलश पीतल का बना हुआ है क्योंकि पीतल भगवान धनवंतरी की प्रिय धातु है। मान्यता है कि इस दिन खरीदी गई कोई भी वस्तु शुभ फल प्रदान करती है और लंबे समय तक चलती है। लेकिन अगर भगवान की प्रिय वस्तु पीतल की खरीदारी की जाए तो इसका तेरह गुना अधिक लाभ मिलता है।

पूजा-पाठ में पीतल का महत्व

पीतल का निर्माण तांबा और जस्ता धातुओं के मिश्रण से किया जाता है। पीतल शब्द पीत से बना है तथा संस्कृत में पीत का अर्थ पीला होता है तथा धार्मिक दृष्टि से पीला रंग भगवान विष्णु को संबोधित करता है। सनातन धर्म में पूजा-पाठ व धार्मिक कर्म हेतु पीतल के बर्तन का ही उपयोग किया जाता है। वेदों के खंड आयुर्वेद में पीतल के पात्रों को भगवान धन्वं‍तरि का अतिप्रिय बताया गया है। शास्त्र महाभारत में वर्णित एक कथा के अनुसार सूर्यदेव ने द्रौपदी को पीतल का अक्षय पात्र वरदानस्वरूप दिया था जिसकी विशेषता थी कि जब तक द्रौपदी चाहे जितने लोगों को भोजन करा दे, खाना घटता नहीं था।

पीतल के पात्रों का महत्व ज्योतिष व धार्मिक शास्त्रों में भी बताया गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सुवर्ण व पीतल की ही भांति पीला रंग देवगुरु बृहस्पति को संबोधित करता है तथा ज्योतिष सिद्धांत के अनुसार पीतल पर देवगुरु बृहस्पति का आधिपत्य होता है।

बृहस्पति ग्रह की शांति हेतु पीतल का उपयोग किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रह शांति व ज्योतिष अनुष्ठानों में दान हेतु भी पीतल के बर्तन दिए जाते हैं।