देवउठनी एकादशी के दिन जरुर करें ये 6 काम, अगले दिन से दिखने लगेंगे चमत्कार

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवउठनी या देवोत्थान एकादशी पर श्रीविष्णु की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है। इस बार देवउठनी एकादशी 08 नवंबर को पड़ रही है। यह एकादशी दीपावली के बाद आती है। इस दिन तुलसी विवाह भी कराते है। देवउठनी एकादशी को हरिप्रबोधिनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी भी कहते हैं। इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है। कहते हैं इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस दिन यदि विधिवत पूजा की जाए तो पूजा करने वाले को एक हजार अश्वमेघ यज्ञ करने जितना फल मिलता है। इस दिन नदियों में स्नान करना और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। आज हम आपको 6 जरुरी काम बताने जा रहे है जो की इस दिन करने चाहिय। इन कामों को करने से भगवान की कृपा हमेशा बनी रहती है और आपकी मनोकामनाएं भी पूरी हो जाती है।

- देवउठनी एकादशी पर स्नान आदि करने के बाद भगवान विष्णु की पूजा की जाती है, लेकिन याद रखें इस दिन मां लक्ष्मी की भी विधिवत पूजा जरूर करें। तभी पूजा पूर्ण मानी जाएगी और मां लक्ष्मी का आशीर्वाद भी मिलेगा।

- पीपल का वृक्ष पूजनीय होता है। मान्यता है कि इसमें देवताओं का वास होता है, इसलिए देवउठनी एकादशी के दिन पीपल के वृक्ष में गाय के घी का दीपक जरूर जलाएं। सुबह यह दीप जलाएं।

- देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता तुलसी का विवाह होता है और इस दिन ये विवाह हर सुहागन को जरूर करना चाहिए। इसे अंखड सौभाग्य और सुख-समृद्धि मिलती है। मां तुलसी को लाल चुनरी जरूर चढ़ाएं।

- शाम को घर के हर कोने को प्रकाशमान बनाएं,क्योंकि इस दिन देवता जागे हैं। मां लक्ष्मी की शाम को जरूर पूजा करें और घर के हर कोने में दीप जलाएं। ऐसा करने से आपके घर में कभी धन की कमी नहीं रहेगी।

- देव दीपावली के दिन मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए सूक्त पाठ जरूर करें। ये आर्थिक संकट को हरने वाला उपाय है।

- देव उठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को दक्षिणवर्ती शंख से गाय के दूध से अभिषेक करना चाहिए।

देवोत्थान एकादशी के दिन तुलसी विवाह का महत्व

देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह की भी परंपरा है। तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त 8 नवंबर को शाम 7:55 से रात 10 बजे तक रहेगा। भगवान शालिग्राम के साथ तुलसीजी का विवाह होता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसमें जालंधर को हराने के लिए भगवान विष्णु ने वृंदा नामक विष्णु भक्त के साथ छल किया था।

दरअसल, प्राचीन काल में जालंधर नाम के राक्षस ने धरती पर उत्पात मचा रखा था। पत्नी वृंदा का पतिव्रत धर्म उस राक्षस की वीरता का राज था। कहा जाता है कि वृंदा की वजह से ही हमेशा विजय होता था। उस समय जलंधर के आतंक से परेशान होकर ऋर्षि-मुनि भगवान विष्णु के पास पहुंचे। भगवान ने काफी सोचकर वृंदा का पतिव्रत धर्म भंग करने का निश्चय किया। उन्होंने योगमाया से एक मृत शरीर वृंदा के घर के बाहर फिंकवा दिया। वृंदा को उसमें अपने पति का शव दिखाई दिया। अपने पति को मृत जानकर वह उस मृत शरीर पर गिरकर रोने लगी। उसी समय एक साधु उसके पास आए और कहने लगे बेटी इतनी दुखी मत हो। मैं इस शरीर में जान डाल देता हूं। साधु ने उसमें जान डाल दी। भावों में बहकर वृंदा ने उस शरीर का आलिंगन कर लिया। उधर उसका पति जलंधर जो देवताओं से युद्ध कर रहा था वह वृंदा का सतीत्व नष्ट होते ही मारा गया बाद में वृंदा को पता चला कि यह तो भगवान विष्णु का छल है। इस बात का जब उसको पता चला तो उसने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि जिस प्रकार आपने छल से मुझे पति वियोग दिया है उसी तरह आपको भी स्त्री वियोग सहने के लिए मृत्युलोक में जन्म लेना होगा और यह कहकर वृंदा अपने पति की अर्थी के साथ सती हो गई। जिस जगह वह सती हुई वहां तुलसी का पौधा उत्पन्न हुआ। भगवान विष्णु अपने छल पर लज्जित होकर बोले कि हे वृंदा! यह तुम्हारे सतीत्व का ही फल है और तुम तुलसी बनकर मेरे साथ ही रहोगी। इस घटना के बाद त्रेतायुग में भगवान विष्णु ने भगवान राम के रूप में अवतार लिया और सीता के वियोग में कुछ दिनों तक रहे और यह भी कहा जाता है कि वृंदा ने विष्णु जी को यह श्राप भी दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। तुम भी भगवान पत्थर के बनोगे और वही भगवान विष्णु का शालिग्राम रूप है।