जाने कब है देवउठनी एकादशी, क्या है इसका महत्व, पूजा विधि और कैसे चालू हुआ ये पर्व?

कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। इस बार देवउठनी एकादशी 08 नवंबर को पड़ रही है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवउठनी या देवोत्थान एकादशी पर श्रीविष्णु की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है। माना जाता है कि भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए सो जाते हैं, कहा जाता है कि इन चार महीनो में देव शयन के कारण समस्त मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। कार्तिक शुक्ल एकादशी कोदेव (भगवान विष्णु ) जागते हैं तभी कोई मांगलिक कार्य संपन्न हो पाता है। देवउठनी एकादशी के दिन चतुर्मास का अंत हो जाता है। इस बार देवउठनी एकादशी 8 नवंबर को है। देवउठनी एकादशी को हरिप्रबोधिनी एकादशी और देवोत्थान एकादशी भी कहते हैं। इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है। कहते हैं इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि इस दिन यदि विधिवत पूजा की जाए तो पूजा करने वाले को एक हजार अश्वमेघ यज्ञ करने जितना फल मिलता है। इस दिन नदियों में स्नान करना और भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।

क्या है देवउठनी एकादशी की पूजा विधि?

- गन्ने का मंडप बनाएं, बीच में चौक बनाया जाता है, चौक के मध्य में चाहें तो भगवान विष्णु का चित्र या मूर्ति रख सकते हैं।

- चौक के साथ ही भगवान के चरण चिन्ह बनाये जाते हैं ,जिसको कि ढंक दिया जाता है, भगवान को गन्ना,सिंघाडा तथा फल-मिठाई समर्पित किया जाता है।

- घी का एक दीपक जलाया जाता है जो कि रात भर जलता रहता है।

- भोर में भगवान के चरणों की विधिवत पूजा की जाती है और चरणों को स्पर्श करके उनको जगाया जाता है, इस दौरान शंख-घंटा-और कीर्तन की ध्वनि की जाती है।भगवान के चरणों का स्पर्श करके जो मनोकामना कही जाती है वह पूरी होती है।

- इसके बाद व्रत-उपवास की कथा सुनी जाती है।

- इसके बाद से सारे मंगल कार्य विधिवत शुरु किये जा सकते हैं।

कैसे शुरू हुआ ये पर्व

धर्मग्रंथों के अनुसार, भाद्रपद मास की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु ने दैत्य शंखासुर को मारा था। भगवान विष्णु और दैत्य शंखासुर के बीच युद्ध लम्बे समय तक चलता रहा। युद्ध समाप्त होने के बाद भगवान विष्णु बहुत अधिक थक गए। तब वे क्षीरसागर में आकर सो गए और कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे। तब सभी देवी-देवताओं द्वारा भगवान विष्णु का पूजन किया गया। इसी वजह से कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की इस एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी कहा जाता है।

देवउठनी एकादशी के दिन व्रत रखने के नियम

- निर्जल या केवल जलीय पदार्थों पर उपवास रखना चाहिए।

- अगर रोगी,वृद्ध,बालक,या व्यस्त व्यक्ति हैं तो केवल एक बेला का उपवास रखना चाहिए।

- भगवान विष्णु या अपने इष्ट-देव की उपासना करें।

- तामसिक आहार (प्याज़,लहसुन,मांस,मदिरा,बासी भोजन ) बिलकुल न खायें।

- आज के दिन ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का जाप करना चाहिए।

- अगर आपका चन्द्रमा कमजोर है या मानसिक समस्या है तो जल और फल खाकर या निर्जल एकादशी का उपवास जरूर रखें।

तुलसी विवाह की परंपरा

देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह की भी परंपरा है। तुलसी विवाह का शुभ मुहूर्त 8 नवंबर को शाम 7:55 से रात 10 बजे तक रहेगा। भगवान शालिग्राम के साथ तुलसीजी का विवाह होता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा है, जिसमें जालंधर को हराने के लिए भगवान विष्णु ने वृंदा नामक विष्णु भक्त के साथ छल किया था। इसके बाद वृंदा ने विष्णु जी को श्राप देकर पत्थर का बना दिया था, लेकिन लक्ष्मी माता की विनती के बाद उन्हें वापस सही करके सती हो गई थीं। उनकी राख से ही तुलसी के पौधे का जन्म हुआ और उनके साथ शालिग्राम के विवाह का चलन शुरू हुआ।

बता दे, इस बार इस अवसर पर सुंदर संयोग बन रहा है, जो भी वर-वधू का जोड़ा परिणय सूत्र में बंधता है उसका गृहस्थ जीवन सुखमय रहेगा। इसलिए 8 नवंबर को विवाह करना अत्यधिक शुभ है। इस दिन से अन्य शुभ काम भी प्रारंभ हो जाएंगे। कार्तिक मास में अन्य शुभ वैवाहिक मुहूर्त भी है। जिसमें विवाह करना मंगलमय और शुभ रहेगा। 19, 20, 21, 22, 23, 28 व 30 नवंबर को विवाह के शुभ मुहूर्त हैं।