आने वाला हैं मातारानी का पावन पर्व नवरात्रि, वास्तु नियमों के साथ करें पूजन

चैत्र के महीने में मातारानी का पावन पर्व नवरात्रि आता हैं जिसकी शुरुआत इस बार 13 अप्रैल से होने जा रही हैं। आदिशक्ति को समर्पित इन नौ दिनों में माता के विभिन्न स्वरूपों का पूजन किया जाता हैं। माता के स्वरूपों की पूजा करते हुए व्रत-उपवास किया जाता हैं। लेकिन माता की आराधना करते समय कुछ नियमों का ध्यान रखना जरूरी होता हैं। आज इस कड़ी में हम आपको मातारानी के पावन पर्व नवरात्रि पर उन वास्तु नियमों की जानकारी लेकर आए हैं जिनके साथ पूजन किया जाना शुभदायी होता हैं। तो आइये जानते हैं इन नियमों के बारे में।

सकारात्मक हो पूजन कक्ष

सर्वप्रथम तो पूजन कक्ष साफ-सुथरा हो, उसकी दीवारें हल्के पीले, गुलाबी, हरे, बैंगनी जैसे आध्यात्मिक रंग की हो तो अच्छा है, क्योंकि ये रंग सकारात्मक ऊर्जा के स्तर को बढ़ाते है। काले, नीले और भूरे जैसे तामसिक रंगों का प्रयोग पूजा कक्ष की दीवारों पर नहीं होना चाहिए।

यहां हो कलश की स्थापना

वास्तुविज्ञान के अनुसार मानसिक स्पष्टता और प्रज्ञा का दिशा क्षेत्र ईशान कोण यानि कि उत्तर-पूर्व दिशा को पूजा-पाठ के लिए श्रेष्ठ माना गया है यहां पूजा करने से शुभ प्रभाव मिलता है और आपको हमेशा ईश्वर का मार्गदर्शन मिलता रहता है। इसलिए नवरात्रि काल में माता की प्रतिमा या कलश की स्थापना इसी दिशा में करनी चाहिए।

इस दिशा में रहे मुख

यद्धपि देवी माँ का क्षेत्र दक्षिण और दक्षिण-पूर्व दिशा माना गया है इसलिए यह ध्यान रहे कि पूजा करते वक्त आराधक का मुख दक्षिण या पूर्व में ही रहे। शक्ति और समृद्धि का प्रतीक मानी जाने वाली पूर्व दिशा की ओर मुख करके पूजा करने से हमारी प्रज्ञा जागृत होती है एवं दक्षिण दिशा की ओर मुख करके पूजा करने से आराधक को मानसिक शांति अनुभव होती है।

दीपक जले इस दिशा में

अखंड दीप को पूजा स्थल के आग्नेय यानि दक्षिण-पूर्व में रखना शुभ होता है क्योंकि यह दिशा अग्नितत्व का प्रतिनिधित्व करती है। आग्नेय कोण में अखंड ज्योति या दीपक रखने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है तथा घर में सुख-समृद्धि का निवास होता है । संध्याकाल में पूजन स्थल पर घी का दीपक जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह होता है। घर के सदस्यों को प्रसिद्धि मिलती है व रोग एवं क्लेश दूर होते है।

इस दिशा में हो पूजन सामग्री

देवी मां के पूजन में प्रयुक्त होने वाली सामग्री पूजन स्थल के आग्नेय कोण में ही रखी जानी चाहिए। देवी मां को लाल रंग अत्याधिक प्रिय है। लाल रंग को वास्तु में भी शक्ति और शौर्य का प्रतीक माना गया है अतः माता को अर्पित किए जाने वाले वस्त्र, श्रृंगार की वस्तुएं एवं पुष्प यथासंभव लाल रंग के ही होने चाहिए। पूजा कक्ष के दरवाजे पर हल्दी, सिन्दूर या रोली से दोनों तरफ स्वास्तिक बना देने से घर में नकारात्मक शक्तियां प्रवेश नहीं करती है।

प्रसन्न होंगी देवी मां

वास्तुशास्त्र के अनुसार शंख ध्वनि व घंटानाद करने से देवी-देवता प्रसन्न होते हैं और आस-पास का वातावरण शुद्ध और पवित्र होकर मन-मस्तिष्क में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। अनेक वैज्ञानिक शोधों से स्पष्ट हुआ है कि जिस स्थान पर शंख ध्वनि होती है वहां सभी प्रकार के कीटाणु नष्ट हो जाते है। माना जाता है कि नवरात्र के दिनों में कन्याओं को देवी का रुप मानकर आदर-सत्कार करने से एवं नियमित भोजन कराने से घर का वास्तुदोष दूर होता है परिवार पर सदैव माँ भगवती की कृपा बनी रहती है।