दैविक साधना के लिए माता के नौ दिन सर्वश्रेष्ठ होतेे हैं लेकिन ऐसा भी कहा जाता है कि शारदीय नवरात्र का अधिक महत्व होता है। चैत्र शुक्ल के नवरात्रों का इतना अधिक महत्व नहीं है। इलैक्ट्रोनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया ने वर्तमान में त्यौहारों इतना ज्यादा महिमा मंडित कर दिया है कि आम जन र्घम के प्रति अंधभक्त हो गया है इसी के चलते वर्ष में दो बार होने वाले नवरात्रों को पर्व के स्थान पर त्यौहार के तरह मनाया जा रहा है। कमोबेश हर घर में इन नौ दिनों में माता की पूजा की जाती हैं। पहले दिन घट स्थापना होती है जिसमें मिटटी के बर्तन में ज्वार पोखी जाती है मान्यता है कि इन आठ नौ दिनों में जिसकी ज्वार उगने के बाद जितनी ज्यादा लम्बी होती है माता की उस पर असीम कृपा रहती है।
चैत्र शुक्ल पक्ष 18 मार्च 2018 की प्रतिपदा से चैत्र नवरात्र का प्रारंभ हो रहा है। इस बार नवरात्रि रविवार को पड रही है। इस दिन
शुभ का चौघड़ीया प्रात: 8:39 से 10:03 तक है तथा 12:53 से 14:18 तक चलेगा
14:18 से 15:43 तक लाभ
15:43 से 17:08 तक अमृत
इसके बाद शाम 18:32 से 20:08 तक है लाभ का चौघड़ीया। घरों में शुभ में घटस्थापना करना सवश्रेष्ठ रहेगा-
चैत्र नवरात्रि के आरंभ के दिन 18 मार्च से ही मां भगवती के 9 रूपों का पूजन-अर्चन शुरू होगा। इस बार 9 नहीं, बल्कि 8 दिन मिलेंगे। अबकी अष्टमी-नवमी साथ-साथ हैं। विशेष इस वर्ष वासंत नवरात्रि का अंतिम व्रत और पारणा भी 25 मार्च, रविवार को ही है।
नवरात्रि आह्वान है शक्ति की शक्तियों को जगाने का ताकि हम में देवी शक्ति की कृपा होकर हम सभी संकटों, रोगों, दुश्मनों व अप्राकृतिक आपदाओं से बच सकें। शारीरिक तेज में वृद्धि हो, मन निर्मल हो व आत्मिक, दैविक व भौतिक शक्तियों का लाभ मिल सके।
चैत्र नवरात्रि पर मां भगवती जगत-जननी का आह्वान कर दुष्टात्माओं का नाश करने हेतु मां को जगाया जाता है। प्रत्येक नर-नारी, जो हिन्दू धर्म की आस्था से जुड़े हैं, वे किसी न किसी रूप में कहीं-न-कहीं देवी की उपासना करते ही हैं। फिर वे चाहे व्रत रखें, मंत्र जाप करें, अनुष्ठान करें या अपनी-अपनी श्रद्धा-भक्तिनुसार कर्म करें।
वैसे मां के दरबार में चैत्र व आश्विन मास में पडऩे वाले दोनों ही शारदीय नवरात्रि में धूमधाम रहती है। सबसे अधिक आश्विन मास में जगह-जगह गरबों व देवी प्रतिमा स्थापित करने की प्रथा है। चैत्र नवरात्रि में घरों में देवी प्रतिमा की घटस्थापना करते हैं व इसी दिन से नववर्ष की वेला शुरू होती है।
घर-घर में उत्साह का माहौल रहता है। कुछ साधकगण भी शक्तिपीठों में जाकर अपनी-अपनी सिद्धियों को बल देते हैं। अनुष्ठान व हवन आदि का भी पर्व होता है। कुछेक अपनी वाक् शक्ति को बढ़ाते हैं, तो कोई अपने शत्रु से राहत पाने हेतु मां बगुलामुखी का जाप-हवन आदि करते हैं। कोई काली उपासक है, तो कोई नवदुर्गा उपासक। कुछ भी हो, किसी न किसी रूप में पूजा तो देवी की ही रहती है।
देवी के भक्तों को हमेशा अपनी माता के दिनों का इंतजार रहता है। उनकी उपासना का समय ध्यान में रखतें हुए वह उनकी उपासना करना चाहतें हैं और उनका प्रसाद पाना चाहतें हैं। देवी के इन नौ दिनों में मंदिरों और सडकों पर बहुत ही चहल-पहल रहती है और इन दिनों में माता की कृपा भी अपने भक्तों पर पूरी बनी रहती हैं।
पाठकों को मुहूर्त की जो जानकारी दी गई है हो सकता है वह आपके मुताबिक सही नहीं हो। कृपा करके पंडितो और मंदिर के पुजारियों से सही समय की जानकारी ले कर घटस्थापना करें।