रामायण और महाभारत दोनों समय उपस्थित थे ये 5 पौराणिक पात्र, आइये जानें इनके बारे में

दिवाली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देता हैं और यह प्रभु श्रीराम की रावण पर जीत के लिए मनाया जाता हैं। प्रभु श्रीराम की जीवनी का पूरा वृत्तांत रामायण में मिलता हैं। इसी के साथ रामायण में उस काल के उपस्थित सभी पौराणिक पात्रों की भी जानकारी मिलती हैं। लकिन क्या आप जानते है कि कुछ पौराणिक पात्र ऐसे हैं जो रामायण औ महाभारत दोनों में अपनी भूमिका प्रदर्शित कर चुके हैं। जी हाँ, आज हम आपको उन्हीं पौराणिक पात्रों के बारे में बताने जा रहे हैं जो रामायण और महाभारत दोनों समय उपस्थित थे।

* हनुमान (Hanuman)

रामायण में प्रमुख भूमिका निभाने वाले भगवान हनुमान महाभारत में महाबली भीम से पांडव के वनवास के समय मिले थे। कई जगह तो यह भी कहा गया है कि भीम और हनुमान दोनों भाई हैं क्योंकि भीम और हनुमान दोनी ही पवन देव के पुत्र थे।

* परशुराम (Parshurama)

अपने समय के सबसे बड़े ज्ञानी परशुराम को कौन नहीं जानता। माना जाता है कि परशुराम ने 21 बार क्षत्रियों को पृथ्वी से नष्ट कर दिया था। रामायण में उनका वर्णन तब आता है जब राम सीता के स्वंयवर में शिव का धनुष तोड़ते है जबकि महाभारत में वो भीष्म के गुरु बनते है तथा एक वक़्त भीष्म के साथ भयंकर युद्ध भी करते है। इसके अलावा वो महाभारत में कर्ण को भी ज्ञान देते है।

* जाम्बवन्त (Jambavan)

रामायण में जाम्बवन्त का वर्णन राम के प्रमुख सहयोगी के रूप में मिलता है। जाम्बवन्त ही राम सेतु के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाते है। जबकि महाभारत में जाम्बवन्त, भगवान श्री कृष्ण के साथ युद्ध करते है तथा यह पता पड़ने पर की वो एक विष्णु अवतार है, अपनी बेटी जामवंती का विवाह श्री कृष्ण के साथ कर देते है।

* मयासुर (Mayasura)

बहुत ही कम लोगों को मालूम होगा की रावण के ससुर यानी मंदोदरी के पिता मयासुर एक ज्योतिष तथा वास्तुशास्त्र थे। इन्होंने ही महाभारत में युधिष्ठिर के लिए सभाभवन का निर्माण किया जो मयसभा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। इसी सभा के वैभव को देखकर दुर्योधन पांडवों से ईर्षा करने लगा था और कहीं न कहीं यही ईर्षा महाभारत में युद्ध का कारण बनी।

* महर्षि दुर्वासा (Maharishi Durvasa)

हिंदुओं के एक महान ऋषि महर्षि दुर्वासा रामायण में एक बहुत ही बड़े भविष्यवक्ता थे। इन्होंने ही रघुवंश के भविष्य सम्बंधी बहुत सारी बातें राजा दशरथ को बताई थी। वहीं दूसरी तरफ महाभारत में भी पांडव के निर्वासन के समय महर्षि दुर्वासा द्रोपदी की परीक्षा लेने के लिए अपने दस हजार शिष्यों के साथ उनकी कुटिया में पंहुचें थे।