Diwali 2021: दिवाली के एक दिन पहले पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है ‘भूत चतुर्दशी’, जानें इससे जुड़ी कुछ रोचक बातें

आज यानी 2 नवंबर को धनतेरस का त्योहार मनाया जा रहा है। धनतेरस के दिन से ही 5 दिवसीय दिवाली पर्व की शुरुआत हो जाती है। दिवाली उत्सव के दौरान धनतेरस, नरक चतुर्दशी, लक्ष्मी पूजन, गोवर्धन पूजा और भाई दूज जैसे त्योहार मनाए जाते हैं, लेकिन इस दौरान पश्चिम बंगाल में एक और पर्व मनाया जाता है, जिसे भूत चतुर्दशी (Bhoot Chaturdashi) के नाम से जाना जाता है। भूत चतुर्दशी के नाम से पता चलता है कि यह पर्व भूत-प्रेत या आत्माओं से जुड़ा हुआ है। भूत चतुर्दशी के पर्व को पश्चिम बंगाल में काली पूजा उत्सव के दिन मनाया जाता है। इसे नरक चतुर्दशी के रूप में वर्णित किया जाता है, इससे जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन नरकासुर नामक असुर का संहार किया था। इस दिन को बुरी आत्माओं को दूर करने के लिए जाना जाता है।

दिवाली से एक दिन पहले यानी कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि में मनाए जाने वाले इस भूत चतुर्दशी (Bhoot Chaturdashi) को कई नाम से जाना जाता है। कई जगह इसे नरक चतुर्दशी या काली चौदस के नाम से भी जानते हैं। इस दिन को छोटी दिवाली के तौर पर देश के कई हिस्‍सों में मनाया जाता है। जैसा कि नाम से ही पता चलता है कि यह पर्व भूत-प्रेत या आत्माओं से जुड़ा है जिसे पश्चिम बंगाल में काली पूजा उत्सव के दिन मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने इसी दिन नरकासुर नामक असुर का संहार किया था और इसलिए इस दिन को नकर चतुर्थी भी कहते हैं।

भूत चतुर्दशी से जुड़ी रोचक बातें

- मान्यता है कि भूत चतुर्दशी की रात बुरी शक्तियां अधिक प्रभावी होती हैं और अंधेरी रात में आत्माएं अपने प्रिय लोगों से मिलने के लिए आती हैं। कहा जाता है कि एक परिवार के 14 पूर्वज अपने जीवित रिश्तेदारों से मिलने के लिए पहुंचे। इन आत्माओं का मार्गदर्शन करने और बुरी आत्माओं को दूर रखने के लिए परिवार के लोग अपने घर के चारों ओर 14 दीये जलाते हैं। इस रात घर के हर कोने को रोशन किया जाता है। इसे अपने पूर्वजों की चौदह पीढ़ियों के सम्मान की परंपरा कहा जाता है।

- एक अन्य मान्यता के अनुसार मां चामुंडा अपने भयावह रूप से बुरी आत्माओं को दूर भगाती हैं। मां चामुंडा को महाकाली का भयावह रूप कहा जाता है और वह बुरी आत्माओं को घरों में प्रवेश करने से रोकती हैं, इसलिए लोग अपने घर के विभिन्न प्रवेश द्वारों और खिड़कियों पर 14 मिट्टी के दीये जलाते हैं।

- इस रात घर के हर कोने को रोशन किया जाता है। इसे अपने पूर्वजों की चौदह पीढ़ियों के सम्मान की परंपरा कहा जाता है।

- इस रात बुरी शक्तियां अधिक हावी होती हैं और इन बुरी शक्तियों को दूर रखने के लिए भूत चतुर्दशी के दिन कई घरों में चौदह अलग-अलग तरह की पत्तेदार सब्जियों और साग को पकाने और खाने की परंपरा है।

- इस दिन बच्चों को घर से बाहर निकलने की अनुमति नहीं दी जाती है। ग्रामीण लोगों की मान्यता के अनुसार, इस रात तांत्रिक सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए तांत्रिक बच्चों का अपहरण करने के लिए आया था, ताकि उनकी बलि चढ़ा कर काली शक्तियों को प्राप्त कर सके।