जीवन में सफलता के लिए इन दुर्गुणों का त्याग है जरुरी वरना सब बेकार

हर व्यक्ति चाहता है कि वह अपने जीवन में बहुत तरक्की करें और उसे उसकी सफलता के लिए उदाहरण के तौर पर जाना जाए। लेकिन उसके अन्दर की दुर्गुणों के कारण वह अपने जीवन में तरक्की की ओर अग्रसर नहीं हो पाता हैं। जी हाँ, मानव के अन्दर कुछ दुर्गुण होते हैं जो उसकी सफलता में बाधक होते हैं। आज हम आपको उन्हीं दुर्गुणों के बारे में बताने जा रहे हैं जो श्रीरामचरितमानस के एक प्रसंग में भगवान शिव ने पार्वती माता को बताए थे। अगर इंसान इन दुर्गुणों का त्याग करता है तभी वो जिंदगी में तरक्की और सफलता प्राप्त कर सकता हैं। तो आइये जानते हैं उन दुर्गुणों के बारे में जिनका त्याग आवश्यक हैं।

* पराई स्त्री पर ना रखें नजर

श्रीरामचरितमानस के अनुसार ये अवगुण जिस मनुष्य में होता है उसे बुरा इंसान ही समझना चाहिए तथा उसका पतन भी निश्चित रूप से होता है। धर्म ग्रंथों में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं, जहां पराई स्त्रियों पर बुरी नजर रखने वाले का पतन हो गया। पराई स्त्री मोह का प्रतीक है, जो भी इस मोह में फंसता है, वह धन, संपत्ति के साथ ही स्वयं भी नष्ट हो जाता है।

* दूसरों की पीडा समझे ना दें दुख

जो मनुष्य दूसरों को परेशानी में डालकर या दुख पहुंचा कर प्रसन्न होते हैं, उसे दुष्ट कहते हैं। बुरे इंसान की प्रवृत्ति भी ऐसी ही होता है। उन्हें दूसरों को कष्ट में देखकर मजा आता है और वे स्वयं भी लोगों को दुख पहुंचाते हैं।

* विनम्र रहे और घमंड नहीं करे

जो लोग सभी के साथ विनम्रता से पेश आते हैं वे सदा सुखी रहते हैं। इसके उलट जो स्वयं को ही सबसे अधिक शक्तिशाली मानते हैं और घमंड में चूर होकर अधार्मिक कार्य करते हैं, बुरे इंसान माने गए हैं। उनका किसी भी तरह बुरा होना तय होता है।

* माता-पिता का अनादर नहीं करे

जो व्यक्ति अपने माता-पिता की बात नहीं मानता तथा उनका अपमान करता है, श्रीरामचरितमानस के अनुसार वह भी बुरे इंसान के समान ही होता है क्योंकि सनातन धर्म में माता-पिता को प्रथम पूजनीय बताया गया है। माता-पिता अपनी संतान के पालन-पोषण के लिए अनेक त्याग करते हैं। जब संतान उनसे अनुचित व्यवहार करती है तो उनके मन को बहुत पीड़ा होती है।

* दूसरे के धन पर नजर न रखें

जो मनुष्य अपने धन से संतुष्ट नहीं होते तथा सदैव दूसरों के धन पर नजर रखते हैं, उसकी प्रवृत्ति बुरे इंसान के समान होती है, क्योंकि वे लोग स्वयं मेहनत नहीं करते, अपितु दूसरे लोगों के धन पर अपना अधिकार सिद्ध कर या बलपूर्वक छीनकर उसका उपभोग करते हैं। इसलिए दूसरों के धन पर नजर न रखते हुए स्वयं के परिश्रम द्वारा प्राप्त धन से ही संतुष्ट होना चाहिए।