कभी आपने गौर किया है कि जो लोग किसी तरह की बुरी आदत के शिकार नहीं होते, सादा जीवन जीते हैं, पौष्टिक आहार लेते हैं और इतना ही नहीं किसी भी तरह के नशे तक का सेवन नहीं करते। फिर भी ऐसे लोगों को कैंसर या फिर हृदय आघात जैसी समस्या हो जाती है। मनुष्य का वर्तमान जीवन उनके पूर्व जन्म के कर्मों पर निर्भर करता है। अपने कर्मों के कारण ही मनुष्य को सुख-दुख, रोग और मृत्यु की प्राप्ति होती है। व्यक्ति का जैसा कर्म होता है उसी अनुसार जन्म के समय उनकी कुंडली में ग्रहों की स्थिति बनती है और उनसे व्यक्ति जीवन भर प्रभावित होता है। कुछ कही-सुनी बीमारियों के अलावा कुछ रोग ऐसे होते हैं जिसके बार में व्यक्ति आमतौर पर चर्चा नहीं कर सकता। ये रोग यौन संबंधी या जिन्हें हम गुप्त रोग कहते हैं, इस श्रेणी में आते हैं। गुप्त रोग क्यों होते हैं, इसके पीछे कौन से ग्रह एवं ज्योतिषीय योग जिम्मेदार होते हैं, इसके बारे में यहां हम आपको बताएंगे।
* ज्योतिष में यौन रोग की चर्चा करते हुए बताया गया है कि वृश्चिक राशि का प्रभाव व्यक्ति के गुप्तांग पर होता है। कुंडली में अगर वृश्चिक राशि दूसरे, छठे, आठवें या बारहवें घर में हो और इन पर अशुभ ग्रहों प्रभाव हो तब व्यक्ति को यौन और गुप्त रोग होने की आशंका रहती है।
* ज्योतिष अध्ययनों के अनुसार किसी जातक की कुंडली में अगर वृश्चिक राशि दूसरे, छठे, आठवें या बारहवें घर में हो और साथ ही इन सभी भावों पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव भी हो, तब व्यक्तिय को यौन और गुप्त रोग होने की आशंका रहती है।
* जन्मकुंडली में आठवां घर और उस घर के स्वामी ग्रह के साथ शुक्र, मंगल, शनि, राहु का संबंध एड्स रोग की आशंका को जन्म देता है। दी गई कुंडली में आठवें घर में शनि के साथ राहु भी बैठें है और आठवें घर के स्वामी मंगल को देख रहे हैं।
* शनि और राहु की दृष्टि शुक्र, केतु, मंगल और सूर्य पर है। ग्रहों की यह स्थिति यौन संक्रमण और मृत्यु योग को दर्शाता है।
* ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुंडली के सातवें घर में शनि राहु बैठे हों, सातवें घर का स्वामी पर शनि राहु की दृष्टि हो या शनि के साथ नीच का शुक्र हो तब पुरुषों में शुक्र की कमी होती है। स्त्री की कुंडली में ऐसा योग होने पर गर्भाशय में परेशानी रहती है जिससे संतान प्राप्ति में परेशानी आती है। दी गई कुंडली में शुक्र शनि और राहु के साथ सातवें घर में बैठा जो इस तरह के योग का निर्माण कर रहा है।