Aja Ekadashi Vrat 2018 : अजा एकादशी व्रत की पूजा विधि व पौराणिक कथा

भाद्रपद कृष्ण एकादशी को अजा एकादशी Aja Ekadashi Vrat 2018 कहा जाता हैं। माना जाता है कि इस दिन किया गया विधिनुसार व्रत व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति दिलाता हैं। इस दिन की गई भगवान ऋषिकेष की पूजा से व्यक्ति मोक्ष को पाता है। अजा एकादशी के व्रत को सावधानिपूर्वक किया जाए तो इसका फल भी अपेक्षानुसार होता हैं। इस अजा एकादशी के महत्व को देखते हुए आज हम आपको अजा एकादशी व्रत की पूजा विधि व इससे जुडी पौराणिक कथा के बारे में बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं इसके बारे में।

* अजा एकादशी व्रत पूजा विधि

एकादशी के दिन व्रती को प्रात:काल में उठकर नित्यक्रिया से निपटने के बाद घर की साफ-सफाई करनी चाहिये। इसके बाद तिल व मिट्टी के लेप का इस्तेमाल करते हुए कुशा से स्नान करना चाहिये। स्नानादि के पश्चात व्रती को भगवान श्री हरि यानि कि विष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिये। पूजा करने से पहले घट स्थापना भी की जाती है जिसमें कुंभ को लाल रंग के वस्त्र से सजाया जाता है और स्थापना करने के बाद कुंभ की पूजा की जाती है। तत्पश्चात कुंभ के ऊपर श्री विष्णु जी की प्रतिमा स्थापित कर उनके समक्ष व्रती संकल्प लेते हैं फिर धूप, दीप और पुष्पादि से श्री हरि की पूजा की जाती है। लेकिन यदि आपको जीवन में काफी संघर्ष और कष्टों से गुजरना पड़ रहा है तो इसके उपाय के लिये आपको विद्वान ज्योतिषाचार्यों से परामर्श लेना चाहिये जो कि अब बहुत ही सरल हो गया है।

* अजा एकादशी व्रत की पौराणिक कथा

सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के बारे में तो लगभग पूरा हिंदुस्तान जानता है। लोक कथाओं से लेकर लोकनाट्यों तक के जरिये जन-जन ने हरिश्चंद्र के दुख को महसूस किया। कर्त्वयपरायणता का पाठ हरिश्चंद्र की कथा से आज भी मिलता है। तो अजा एकादशी की कथा इन्हीं सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की कथा है। बात सतयुग की है राजा हरिश्चंद्र बहुत ही सत्यवादी और चक्रवर्ती राजा हुआ करते थे। उनके दरबार से कोई खाली नहीं जाता था। एक बार ऋषि विश्वामित्र ने उनकी परीक्षा लेने की सोची उन्होंनें हरिश्चंद्र से सारा राज-पाट मांग लिया। अब हरिश्चंद्र बिल्कुल कंगाल हो गये बात यहीं खत्म नहीं हुई विश्वामित्र ने उनसे स्वर्ण मुद्राएं मांग ली जिन्हें देने का वचन वे भूलवश दे बैठे। जब विश्वामित्र ने उन्हें याद दिलाया कि राज-पाट तुम पहले ही सौंप चुके हो तो अब मुद्राएं कैसे दोगे तो हरिश्चंद्र ने अपनी पत्नी और पुत्र को गिरवी रख दिया लेकिन फिर भी मुद्राएं पूरी नहीं हुई फिर उन्होंनें खुद को भी एक चांडाल का दास बनना स्वीकार किया और महर्षि की मुद्राएं पूरी की।

लेकिन उसके कष्टों की कहानी यहां खत्म नहीं हुई। हरिश्चंद्र शमशान में मृतकों के परिजनों से दाह संस्कार के बदले कर वसूली करने के काम को करता था। कई बार उनके सामने धर्मसंकट की स्थिति भी बनी लेकिन वे सत्य और कर्तव्य के मार्ग से विचलित नहीं हुये। उधर हरिश्चंद्र की पत्नी को माली के यहां काम करना पड़ा एक दिन की बात है बगीचे में खेल रहे पुत्र रोहिताश को सांप ने काट लिया जिससे उसकी वहीं पर मृत्यु हो गई। वह रोती बिलखती पुत्र के शव को लेकर शमशान में पंहुची तो पुत्र की लाश को देखकर हरिश्चंद्र का कलेजा भी भर आया। सारा वृतांत सुनकर हरिश्चंद्र ने कहा कि मैं अपने कर्तव्य में बंधा हुआ जो भी यहां दाह संस्कार के लिये आता है उसे कर के रुप में कुछ न कुछ देना पड़ता है। तुम्हारे पास क्या है। उस बेचारी के पास अपने पुत्र की लाश के अलावा क्या था। यह दिन भाद्रपद की कृष्ण एकादशी का था दोनों के सुबह से कुछ भी खाया नहीं था। अपने हालातों पर दोनों भगवान से प्रार्थना कर रहे थे।

जब हरिश्चंद्र ने दाह संस्कार नहीं करने दिया तो रानी ने अपनी आधी साड़ी चीर कर हरिश्चंद्र को कर के रुप में दी। उधर प्रभु भी यह सब कुछ देख रहे थे तो हरिश्चंद्र की कर्तव्य परायणता को देखकर उन्होंनें उनके पुत्र को जीवित कर दिया और फिर से हरिश्चंद्र को राज-पाट भी लौटा दिया। तो इस प्रकार अजा एकादशी के व्रत से हरिश्चंद्र के समस्त दु:खों का निवारण हो गया। इस एकादशी की कथा के बारे में मान्यता है कि इस कथा के सुनने मात्र से ही अश्वमेध यज्ञ के समान फल की प्राप्ति होती है।