Janmashtami Special : गीता के अनुसार सभी देवता एक ही भगवान का अंश हैं

भारतीय हिन्दू धर्म में गीता के ज्ञान को ही सर्वोपरी माना गया हैं। यह ज्ञान श्री कृष्ण ने अर्जुन को महाभात के युध्द के समय दिया था। गीता के इस ज्ञान के अनुसार ही सभी देवताओं को भगवान् विष्णु का अंग माना गया हैं। आज कृष्ण जन्माष्टमी के इस पावन पर्व पर हम आपको गीता में बताते गए कुछ अध्यायों का सारांश बताने जा रहे हैं। जिनका ज्ञान प्राप्त कर हमारा जीवन सफल हो सकें।

* दसवां अध्याय

इस अध्याय का नाम विभूतियोग है। इसका सार यह है कि लोक में जितने देवता हैं, सब एक ही भगवान का अंश हैं। मनुष्य के समस्त गुण और अवगुण भगवान की शक्ति के ही रूप हैं। देवताओं की सत्ता को स्वीकारते हुए सबको विष्णु का रूप मानकर समन्वय की एक नई दृष्टि प्रदान की गर्इ है जिसका नाम विभूतियोग है।

* ग्याहरवां अध्याय

ग्यारहवें अध्याय का नाम विश्वरूपदर्शन योग है। इसमें अर्जुन ने भगवान का विश्वरूप देखा। विराट रूप का अर्थ है मानवीय धरातल और परिधि के ऊपर जो अनंत विश्व का प्राणवंत रचनाविधान है, उसका साक्षात दर्शन।

* बारहवां अध्याय

जब अर्जुन ने भगवान का विराट रूप देखा तो वह घबरा गया और घबराहट में उसके मुंह से ‘दिशो न जाने न लभे च शर्म’ वाक्य निकले। उसने प्रार्थना की, कि मानव के लिए जो स्वाभाविक स्थिति ईश्वर ने रखी है, वही पर्याप्त है।