Janmashtami Special : भगवतगीता के अंतिम तीन अध्यायों का सारांश जो मनुष्य को कार्य और अकार्य की पहचान होना दिलाता है

आज हम कृष्ण जन्माष्टमी के इस ख़ास मौके पर आपको भगवतगीता में कृष्ण के द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश के बारे में बताने जा रहे हैं। इन उपदेशों का ज्ञान हमारे जीवन में नई सफलताएँ लेकर आता हैं। इसलिए आज हम आपको भगवतगीता के अंतिम तीन अध्यायों का सारांश बताने जा रहे हैं। तो आइये जानते हैं इनके बारे में।

* सोलहवां अध्याय

सोलहवें अध्याय में देवासुर संपत्ति का विभाग बताया गया है। आरंभ से ही ऋग्देव में सृष्टि की कल्पना दैवी और आसुरी शक्तियों के रूप में की गई है। एक अच्छा और दूसरा बुरा।

* सत्रहवां अध्याय

ये अध्याय श्रद्धात्रय विभाग योग है। इसका संबंध सत, रज और तम, इन तीनों गुणों से है, अर्थात् जिसमें जिस गुण का प्रादुर्भाव होता है, उसकी श्रद्धा या जीवन की निष्ठा वैसी ही बन जाती है। यज्ञ, तप, दान, कर्म ये सब इसी से संचालित होते हैं।

* अठारहवां अध्याय

अठारहवें अध्याय में मोक्षसंन्यास योग का जिक्र है। इसमें गीता के समस्त उपदेशों का सार एवं उपसंहार है। इसमें बताया गया है कि पृथ्वी के मानवों में और स्वर्ग के देवताओं में कोई भी ऐसा नहीं जो प्रकृति के चलाए हुए इन तीन गुणों से बचा हो। मनुष्य को क्या कार्य है, क्या अकार्य है, इसकी पहचान होनी चाहिए। धर्म और अधर्म को, बंध और मोक्ष को, वृत्ति और निवृत्ति को जो बुद्धि ठीक से पहचनाती है, वही सात्विक बुद्धि है।