हिन्दू महीने के अनुसार पौष शुक्ल पक्ष में मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है। मकर संक्रांति पूरे भारतवर्ष और नेपाल में मुख्य फसल कटाई के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व 13 जनवरी को ही मनाया जाता है। इस दिन उत्सव के रूप में स्नान, दान किया जाता है। तिल और गुड के पकवान बांटे जाते है। पतंग उड़ाए जाते हैं। इस पर्व को सूर्य-शनि से जुड़ा पर्व भी कहा जाता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि की राशि में प्रवेश करेंगे तथा दो माह तक रहते हैं। मकर संक्रांति मनाते सब हैं पर ज्यादातर लोग इस पर्व के बारे में कुछ रोचक तथ्य है जो नहीं जानते। आज हम वोही रोचक तथ्य आपके लिए लेकर आए है
1 . मकर संक्रांति क्यों कहते हैं?
मकर संक्रांति पर्व मुख्यतः सूर्य पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है। एक राशि को छोड़ के दूसरे में प्रवेश करने की सूर्य की इस विस्थापन क्रिया को संक्रांति कहते है, चूँकि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इस समय को मकर संक्रांति कहा जाता है।
2 . सूर्य उत्तरायण इस दिन सूर्य दक्षिणायन से अपनी दिशा बदलकर उत्तरायण हो जाता है अर्थात वैज्ञानिक पहलुओं से देखें तो ठंड के मौसम जाने का सूचक है और मकर संक्रांति पर दिन-रात बराबर अवधि के होते हैं। इसके बाद से दिन बडे हो जाते हैं और मौसम में गर्माहट आने लगती है। फसल कटाई अथवा बसंत के मौसम का आगमन भी इसी दिन से मान लिया जाता है।
3 . पतंग महोत्सव यह पर्व सेहत के लिहाज से बड़ा ही फायदेमंद है। सुबह-सुबह पतंग उड़ाने के बहाने लोग जल्द उठ जाते हैं वहीं धूप शरीर को लगने से विटामिन डी मिल जाता है। इसे त्वचा के लिए भी अच्छा माना गया है। सर्द हवाओं से होने वाली कई समस्याएं भी दूर हो जाती हैं।
4 . तिल और गुड़ सर्दी के मौसम में वातावरण का तापमान बहुत कम होने के कारण शरीर में रोग और बीमारी जल्दी लगते हैं। इस लिए इस दिन गुड और तिल से बने मिष्ठान खाए जाते हैं। इनमें गर्मी पैदा करने वाले तत्व के साथ ही शरीर के लिए लाभदायक पोषक पदार्थ भी होते हैं। इसलिए इस दिन खासतौर से तिल और गुड़ के लड्डू खाए जाते हैं।
5 . स्नान, दान, पूजा माना जाता है की इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से नाराजगी त्याग कर उनके घर गए थे। इसलिए इस दिन को सुख और समृद्धि का माना जाता है। और इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान, पूजा आदि करने से पुण्य हजार गुना हो जाता है। इस दिन गंगा सागर में मेला भी लगता है।
6 . फसलें लहलहाने का पर्व यह पर्व पूरे भारत और नेपाल में फसलों के आगमन की खुशी के रूप में मनाया जाता है। खरीफ की फसलें कट चुकी होती है और खेतो में रबी की फसलें लहलहा रही होती है। खेत में सरसो के फूल मनमोहक लगते हैं। पूरे देश में इस समय ख़ुशी का माहौल होता है। अलग-अलग राज्यों में इसे अलग-अलग स्थानीय तरीकों से मनाया जाता है। क्षेत्रो में विविधता के कारण इस पर्व में भी विविधता है। दक्षिण भारत में इस त्यौहार को पोंगल के रूप में मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे लोहड़ी कहा जाता है। मध्य भारत में इसे संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति को उत्तरायण, माघी, खिचड़ी आदि नाम से भी जाना जाता है।
7. हर साल एक ही तारीख क्यों?यही त्योहार ऐसा है जो हर साल एक ही तारीख को आता है। क्योंकि यह त्योहार सोलर कैलेंडर को फालो करता है। दूसरे त्योहारों की गणना चंद्र कैलेंडर के आधार पर होती है। यह साइकल हर 8 साल में एक बार बदलती है। उसी के एक दिन बाद यह त्योहार मनाया जाता है। एक गणना के मुताबिक 2050 से यही त्योहार 15 जनवरी को मनाया जाएगा। फिर हर आठ सालों में 16 जनवरी को मनाया जाएगा।
8. मलमास समाप्त होता है इसी दिन मलमास भी समाप्त होने तथा शुभ माह प्राम्भ होने के कारण लोग दान पुण्य से अच्छी शुरुआत करते हैं।
9. महाभारत से संबंध महाभारत काल के महान योद्धा भीष्म पितामह ने भी अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का दिन ही चयन किया था।
10. भगवान विष्णु ने किया असुरों का अंत इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी व सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इस प्रकार यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।