ये 5 बातें पहुंचाती है वंश और व्यापार को नुकसान।

मत्स्य पुराण, अग्नि पुराण तथा वेदों में वास्तु पुरुष से संबंधित खुलकर व्याख्या की गई।अनेकों ऐसे निर्माण है जो वास्तु को ध्यान में रखकर किए गए थे। इनमें से एक है इंद्रप्रस्थ की नगरी का निर्माण भगवान श्रीकृष्ण ने मयासुर से करवाया था। मयासुर चूँकि दैत्य संस्कृति का था। भगवान ने उस महल में अनेकों वास्तु के दोष को निर्मित करने के आदेश मयासुर को दिए थे। बहुत सारे दोष मयासुर ने उसके अंदर छोड़े जिनमें से मुख्य था, वह जल कुंड जिसमें दुर्योधन गिरा था। वह जल कुण्ड उस महल के मध्य में निर्मित था। भूखंड का मध्य भाग में ब्रह्माजी का क्षेत्राधिकार है। वास्तु से संबंधित ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि यदि भूखंड का मध्य भाग जल, अग्नि, स्तम्भ आदि से पीड़ित हो तो वंश का नाश होता है। यही कारण था कि इंद्रप्रस्थ नगरी को जब दुर्योधन ने अपने अधीन कर लिया, तो वहीं स्थित होकर शासन करने लगा और उसके संपूर्ण कुल का अंत हो गया।

1. भूखंड के उत्तर दिशा में संपूर्ण निर्माण तथा दक्षिण दिशा निर्माण रहित हो तो वंश वृद्धि बाधित होती है।

2. ईशान कोण में शौचालय या सीढ़ियों का निर्माण संतान या गृहस्वामी के लिए कष्ट कारक होता है।

3. घर का मुख्य द्वार अग्नि कोण में हो तो संतान की आकस्मिक मृत्यु या संतान सुख प्राप्त नहीं होता है।

4. घर का ब्रह्म स्थान यदि पीड़ित हो तो वंश वृद्धि नहीं होती है।

5. पश्चिम दिशा से वायव्य कोण के मध्य का द्वार व्यापार के लिए हानिकारक होता है।
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